Sunday, September 28, 2008
Tuesday, September 16, 2008
Wednesday, September 3, 2008
Monday, July 28, 2008
people and things
Sunday, July 27, 2008
अस्तित्व ----------
कहते हैं इस दौर में लड़कियाँ
बहुत आगे हैं बढ़ रही
कोई छू रही आसमान तो
कोई धरती की गहराई है नाप रही
कोई जीवन दान दे रही तो
कोई दूसरे का आशियाँ है बना रही
कोई दूसरो के हक़ के लिए लड़ रही तो
कोई दहेज़ है एक अभिशाप का पाठ सबको पढ़ा रही
कोई अपना रही बेसहाराओ को
और पराये का भेद मिटा रही ,
तो कोई आज देश की
प्रधानमंत्री , रास्ट्रपति बन
बागडोर संभाल रही ,
पर कौन जाने क्या हो सच
उन पर भी तो हो सकती है कोई मुशीबत
क्या गारंटी है की
जो छू रही आसमान
उसे किसीने धरती पर न पटका हो
और जो गहराई है नाप रही
उसे कोई जख्म न गहरे दे जाता हो
जो जीवन दान दे रही ,घाव भर रही
कौन जाने उसे ही जीने के लाले हों ,
और शरीर पर जाने कितने ही
निशान घाव के गहरे हों ,
जो बना रही दूसरो का आशियाँ
हो सकता है वो ख़ुद ही
सर छुपाने की जगह हो ढूंड रही ,
लड़ रही है जो दूसरो के हक़ की लड़ाई
कौन जाने उससे ही सब लड़ते हों हक़ की लड़ाई ,
दहेज़ है एक अभिशाप
पाठ जो सबको पढा रही
हो सकता है उसके ही ब्याह मे
हो दहेज़ की भारी मांग हो रही ,
जो अपना रही बेसहाराओ को
क्या गारंटी है की
उसका भी कोई सहारा हो
या हो सकता है की सबने
उसको ही पराया कर डाला हो ,
जो कल थी देश की प्रधानमंत्री ,
आज है रास्ट्रपति ,
क्या हो नहीं सकता की
उसकी दुनियाँ भी हो विरान सी
दुखती हो उनकी भी आँखे
पर दिखा नहीं वो पाती हों
क्युकी आज हैं वो
देश के सर्वश्रेष्ठ पद पर ।
Friday, July 25, 2008
Saturday, July 19, 2008
आज की शाम मेरे पापा के नाम
करती हूँ आपसे प्यार बहुत
पर कह नही मैं पाती हूँ
कहूँ भी तो कैसे कहूँ ?
कर नहीं पाई हूँ अभी तक
आपके उन सपनो को पूरा
जो देखे थे आपने मेरे लिए
जानती हूँ की
मन ही मन दुखी हैं
आप मेरे लिए
देखा है मैंने उस दुःख ,उस दर्द को
टूट गए हैं मेरी विफलताओं से आपफिर भी
मुस्कुराते हैं की
कहीं मैं भी न टूट जाऊं
पापा मेरा वायदा है आपसे आज
नहीं टूटने दूंगी
आपकी उमीदों को ,आशाओं को
क्यूंकि देखा है मैंने
हमेशा आपकी मेहनत ,आपकी हिम्मत को
न दिन का चैन ,न रात ही आराम किया
आठों पहर बस हमारे लिए ही काम किया ।
देखा है मैंने उस चमक
को आपकी आंखो मैं आते हुए
जब भी मैं पास होती थी और
उन आँसुओ को भी
जब मैं बीमार पड़ती थी
मुझे याद है हर लम्हा , हर वो पल
जब आप मेरे साथ खड़े थे ।
कभी डांटना ,कभी मनाना ,
कभी हँसाना ,कभी रुलाना
और फिर अपने हाथों से खाना खिलाना
हाँ पापा सब याद है मुझे
पूरी कोशिश करुँगी ,करती रहूँगी
आपके सपनों को पूरा करने की
जो देखे थे आपने मेरे लिए
पर अगर पास न हो पाऊं तो
दुखी न होना
भले ही मैं कुछ बन न पाऊं
पर जिंदगी का जो
पाठ आपने मुझे पढाया है
नहीं भूलूंगी उसे कभी
और उसी के बल
एक अच्छा इंसान बन जरुर दिखाउंगी
न छोडूगी साथ आपका जीवन भर
लाठी की जगह आपका
सहारा मैं बन जाऊँगी
न होने दूँगी आपका बुढापा नीरस
फिर से आपकी
वही छोटी सी गुड़िया
मैं बन जाऊँगी ।
और एक अच्छी बेटी होने के
सारे फ़र्ज़ निभाऊँगी
हम गुलाम हैं , हाँ हम गुलाम हैं
Saturday, June 21, 2008
Tuesday, June 17, 2008
कश्मीर युद्ध
ये थी मेरी पहली कविता --------------------------------------
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की लड़ाई थी
दोनों ही तरफ़ के सैनिकों ने
अपनी - अपनी जान लड़ाई थी
अचनाक दुश्मन लाइन आफ कंट्रोल पर पहुँचा
तो अपने सैनिक ने भी उसे धर दबोचा
बोला आज तुझे मारुंगा और तेरे खून से
अपने देश की प्यास बुझाऊंगा ,
दुश्मन डर गया और बोला
थोड़ा सा अपने मन को मोड़ लो
मेरे प्यारे भाई मुझे छोड़ दो
जाने कौन सी हवा चल गई
अपने प्यारे सैनिक को दया आ गई
सैनिक बोला ठीक है छोड़ दूंगा
तेरे लिए अपना मन भी मोड़ लूँगा
पर मेरी भी एक शर्त है
मान ले यदि तू एक मर्द है
दुश्मन मन ही मन मुस्कान
सोचा ये इसकी भूल है
और बाहर बोला मुझे सब मंजूर है
इत्तिफाक से अपना सैनिक एक कवि था
उसका कवि मन जागा और
इधर - उधर भागा
उसने दुश्मन को कविता सुनाई
दुश्मन की सारी इन्द्रियाँ झ्न्नाई
दुश्मन को कुछ भी समझ नहीं आ रहा
था फिर भी सैनिक के गुण गाये जा रहा था
उम्मीद थी की कभी तो कविता ख़त्म होगी
और उसके दिल की इच्छा भी पूरी होगी
इतने मैं कवि बोला
अरे ! मेरा साहस तो बढ़ाओ
जरा जोर - जोर से तालियाँ तो बजाओ
कवि अपनी कविता सुनाता गया
दुश्मन से तालियाँ बजवाता गया
उसने दुश्मन से ताली बजवाई तबतक
ताली बजाते - बजाते दुश्मन की
जान नही चली गई जबतक
इसतरह सैनिक ने दुश्मन को मिटाया
अपने सैनिक होने का फ़र्ज़
और कवि होने का गर्व
दोनों को साथ - साथ निभाया ।
अगर आप समाज को और करीब से जानना चाहते हैं TO नीचे लिखे लिंक पर क्लिक करें
Monday, June 16, 2008
सबसे बड़ा अपराधी कौन ?
वो माँ - बाप जो बेटी को पैदा तो कर देते है पर उसे कभी अपना नही पाते , समझ नही पाते , प्यार नही कर पाते , जो उसे बोझ समझते है और शादी कर उससे मुक्त होना चाहते है।
या फिर वो पति , सास - ससुर , नन्द , या इसी तरह के और रिश्ते जो उसे जला कर मार डालते है या जीवन भर उसे जीने नही देते । क्या आपके पास है इसका उत्तर ?
Thursday, June 12, 2008
Sunday, June 8, 2008
वित्त मंत्रीजी जरा ऐ.सी रूम से बाहर निकलिये
१) पहले महँगाई बढाओ , भुखमरी फैलाओ ।
२) फिर किसानों को क़र्ज़ लेने के लिए उकसाओ की ब्याज दरें कम कर दी गई हैं । और फिर आत्महत्या के लिए मजबूर करो ।
३) जब १० - १५ किसान आत्महत्या कर लें तब उनकी चर्चा घर - घर फैलाओ ।
४) फिर उनके दुखो का रोना रोकर सहानभूति दिखाकर उन्ही का पैसा उन्ही को भीख मै उन्हें लौटाओ । और अपने - अपने पार्टी का झंडा लहराओ .
Wednesday, May 28, 2008
कितना सुंदर था वो बचपन ,कैसा है ये आज का बचपन
कितना सुंदर था वो बचपन
सुबह देर से उठाना , जल्दी सोना
बिन चिंता सपनो मै खोना
कभी रोना तो कभी हँसना
सबसे अपनी बातें मनवा लेना
कितना न्यारा था वो बचपन
प्यारी सी किताबे रंग बिरंगी
सुंदर कविताएं चाँद तारो की
थोड़ा सा काम ,पूरे दिन आराम
खेल खेलना दोस्तो संग
सूरज की शादी चाँद के संग
गुड्डे - गुडियों से खेला करते थे
बचपन मै झूला करते थे
न चिंता किसी की न फिक्र कोई
पंख बिना ही उड़ जाते थे
सारी खुशियाँ झोली मै भर लेते थे
कभी भागते तितलियों के पीछे
तो कभी नीले आकाश को छुवा करते थे
मम्मी - पापा के प्यारे थे हम
सबके राज दुलारे थे ।
आज का बचपन---------------------
भोला बचपन,प्यारा बचपन
पर जाने क्यों आज
नीरस हो गया बचपन
सुबह जल्दी उठना , रात देर से सोना
चिंता मै सपनो का खोना
हंसने का भी टाइम नही अब
रोने को भी टाइम नही है
हर दम चिंता सताती
पढ़ाई की ही रट लगी रहती
निकलना है सबसे आगे
मम्मी हरदम यही समझाती
खो गई चाँद - तारो की कहानी
हो गई अब ये बहुत पुरानी
अब कोई नही भागता तितलियों के पीछे
न देखता है नीला आकाश कोई
और न अब पंछियों सी ही आजादी है
खेल - खिलोने छुट गए सब
संगी- साथी भी रूठ गए अब
हरदम नंबर आने की होड़ लगी है
सबको पीछे कैसे छोड़ना है
यही जोड़ - तोड़ लगी है
अपना वजन है कम , किताबो का ज्यादा है
इस कोम्पटीसन के जमाने ने तो
बच्चो से बचपन ही छीन लिया है .
Tuesday, May 27, 2008
चाहे तो टीचरों और बच्चो पर एक सर्वे करा कर देख लो
२) दुनिया के साथ कदम के कदम मिलाकर चलाने के लिए ।
३)ज्ञान प्रदान करने के लिए । या फिर ----------------
१)एक सब्जेक्ट के लिए कई-कई रायटरो की किताबो से पैसे कमाने के लिए ।
२)कोर्स को लंबा कर ये दिखाने के लिए की सी.बी.एस.ई स्कूलों मै कितनी पढ़ाई होती है ।
३)या अपनी फीस मै लगातार वृद्धि कर ये दिखाने के लिए की हम भी दुश्रे स्कूलों से कम नही।
अब केंद्रीय विद्यालयों को ही ले लीजिये --------और तो और टीचरों पर भी इतना बोझ डाल दिया है की पूछिये मत ।(मैं ख़ुद ही इसकी गवाह हूँ)। टीचरों को पढाने को कम समय मिलता है और फालतू के कामो पर ज्यादा समय बरबाद होता है । जैसे ही क्लास मै पहुंचे पहले डायरी भरो की कौन सा पीरियड है , कितने बच्चे आए है ,क्या पढ़ना है । कुछ समय इसमे बरबाद हुआ , कुछ समय बच्चो को चुप कराने मै तो पढाने को कितना समय मिला होगा आप ख़ुद ही अंदाजा लगा सकते है । ऊपर से पढ़ना भी उनके हिसाब से ही है जैसे --------आज केवल सुलेख ही कराना है , आज केवल कविता ही पढानी है ,या फिर पाठ के प्रशन - उत्तर ही कराने है । टीचर जब तक स्कूल मै रहते है टेंशन मै ही नजर आते है । कभी डायरी भरते हुए की क्या -क्या पढाया जा रहा है , किस -किस बच्चे ने ग्रह-कार्य नही किया , किसकी ड्रेस गन्दी थी आदि । जब किसी टीचर पर इतना बोझ डाल दिया जायेगा , इतना प्रेसर होगा तो क्या वो ठीक से पढ़ा पायेगा बच्चो को। ख़ुद टीचर ही कहते है की पहले हम बच्चो को पूरा समय देते थे अच्छे से पढाते भी थे पर अब इतना बोझ हो गया की ठीक से पढाने का समय ही नही मिलता। वो ख़ुद कुबूल कर रहे हैं की अब पहले के मुकाबले । सी.बी.एस. ई(केंद्रीय विद्यालयों) मै वो बात नही रही । मै ये नही कह रही की सभी केन्द्रियाविद्यालायो की यही कहानी है पर ९०% की यही कहानी है। (चाहे तो टीचरों और बच्चो पर एक सर्वे करा कर देख लो)।
www.cbse.nic.in
आप भी बच्चो के भविष्य को सुधारना चाहते है उनके लिए कुछ करना चाहते है तो कृपया अपना योगदान जरुर दे ।
Monday, May 26, 2008
पैटर्न और भाषा एकदम घटिया (सी .बी.एस.ई )
अब पहले क्लास की एक कविता ही ले लीजिये --------
छ: साल की छोकरी
भरकर लाइ टोकरी
टोकरी मै आम है
नहीं बताती दाम है
दिखा- दिखाकर टोकरी
हमे बुलाती छोकरी
इस कविता को पढिये और आप ही बताइये की क्या सीख पायेगा नन्हा सा बच्चा इस कविता से और हो सके तो सी .बी.एस.ई वालो तक भी इस बात को पहुँचा दीजिये आपकी बहुत मेहरबानी होगी।
Saturday, May 24, 2008
क्या कहते हैं आंकडे ?
एक आंकडे के मुताबिक भारत मै प्रत्येक २६ मिनट मै एक महिला छेड़छाड़ की शिकार होती है , प्रत्येक ३४ मिनट मै उसके साथ बलात्कार होता है , हर ४३ मिनट मै कोई उसका अपहरण कर लेता है और प्रत्येक ९३ मिनट बाद देश के किसी न किसी हिस्से मै उसकी हत्या कर दी जाती है।
बिजनौर के कल्याण सिहं ने पुष्पा देवी के नाक, कान काट दिए
Wednesday, May 21, 2008
क्या हर आदमी यू ही आतंकवादी बनता जायेगा ?
आतंकवाद ,
है बहुत बडा विवाद
घिन करते है इससे सब
फिर जाने क्यों, कब
आतंकवादी बन जाते है
खून , कत्ल , तमंचा , हतियार
लूट-पाट और बलात्कार
करते है इससे जुड़ने से इनकार
फिर एक दिन अचानक
जाने क्यों इनके हो जाते है
जो रोते थे कभी
खून देखकर,
आज दूसरो के साथ
खूनी होली खेल मुस्कुराते है
थे ये भी कभी इंसान
जो आज आतंकवादी कहलाते है
कई शौक मै तो कई मजबूरी मै
इसे अपनाते है
किसी ने छीना इनका घर
इनकी दौलत, इनका गुरूर , इनका परिवार
उसी की खातिर अब
ये औरो का घर उजाड़ते है
वैसे कौन ऐसा होगा जो
सब चुपचाप सहता जायेगा
अपने सामने बहन की इज्जत लुटते देख
क्या भाई का खून नही khaul जायेगा
और उसी का बदला लेने की खातिर
वह भी आतंकवादी बन जायेगा
फिर किसी बहन की इज्जत लूट
वह अपनी कसम निभाएगा
और फिर बहन की इज्जत लुटते देख
कोई भाई आंतकवादी बन जायेगा
इसी तरह यह क्रम यू चलता ही जायेगा
बदले की आग मै निर्दोष भी
मौत के घाट उतरता जायेगा ।
पर क्या , इस तरह निर्दोष की जाने लेकर
सही मायने मै कोई
अपना बदला ले पायेगा
और क्या हमपर हरदम
इसी तरह ,
आतंकवाद का साया लहरायेगा
अपना- अपना बदला लेने की खातिर या ,
जल्दी पैसे कमाने की खातिर,
क्या हर आदमी यू ही
आतंकवादी बनता जायेगा ?
Saturday, May 17, 2008
knowledge of ATM
यद्यपि सुरक्षा का ये तरीका एक अच्छे हैकर के सामने कुछ नही था। और इसी कारण से एटीएम कम्प्यूटर साईंस की शरण में आया। इनके कारण क्रिप्टोलोजी का व्यवसायीकरण हुआ। जो कि कोड और सिफ़र का अध्ययन है। सन १९७० तक क्रिप्टोलाजी पर सैन्य एवं राजनयिकों का एकाधिकार हुआ करता था। कोड की किताबें और सिफ़रिंग की मशीने रेडियो और टेलीग्राफ़िक सिग्नलो के संरक्षण के लिये ही इस्तेमाल की जाती थी। कई सुपर पावरो ने अपने धन और संसाधनो को क्रिप्टोलाजी के विशेषज्ञों को जुटाने में लगा दी थी, उनका एकमात्र ध्येय अपने संदेशों की मज़बूत कोडिंग और विरोधियों के संदेशों की डीकोडिंग करना था। इस बढती हुई क्रिप्टोलाजिस्ट्स की मांग से ऐसी ऐसी तकनीकों का विकास हुआ जो कि अभी तक सेनाओं तथा राजनयिकों द्वारा एक भेद के रूप में छुपा कर रखी गईं थीं। उस समय बैंकों और उनके पूर्तिकर्ताओं (सप्लायर्स) को अचानक एहसास हुआ कि उन्हे क्रिप्टोलाजी तथा क्रिप्टोलाजी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत विशेषज्ञों की आवश्यकता है।ये एक नितांत अलग किस्म की क्रिप्टोलाजी थी, चूंकि जहां सेनाओं का ध्यान अपने संदेशों को एक राज़ बनाये रखना होता था वहीं दूसरी ओर बैंको का ध्येय था अपने ग्राहकों की सूचना का सत्यापन करना। हालांकि इस वक्त कम्प्यूटर सिक्योरिटि अपनी शैशवावस्था में थी, और अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी एफ़ बी आई के दिशा निर्देशों पर आधारित थी। इस आधार पर तीन तरह के आईडेन्टिफ़िकेशन आंकडे परिभाषित किये गये, ये ऐसे आंकडे थे जो कि यूसर जानता हो। मसलन एक पासवर्ड, ध्वनि पहचान, यूसर के हस्ताक्षर अथवा चेहरे की पहचान। जो यूसर वर्गीकृत सिस्टम को एक्सेस करना चाहते थे, उन्हे इनमें से दो तरह की सुरक्षा जांच से गुज़रना होता था। ये सभी सुरक्षा के तरीके उतने असरदार नही थे जितने कि बैंकों को चाहिये थे। इसी लिये बैंको की सुरक्षा से जुडे लोगो ने उपरोक्त में से दो तरीके अपनाने शुरु करे।
ए टी एम डिज़ाईनर्स ने विभिन्न यूसर्स की पहचान के लिये पहले तरीके को अपनाया।
अब समस्या ये आई कि पिन को सुरक्षित कैसे बनाया जाये। इन सब से निपटने के लिये भांति भांति की तकनीको का विकास हुआ, जिनमे से आई बी एम और वीसा VISA सिस्टम सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। आई बी एम के सिस्टम को १९७९ में लांच किया गया जबकि वीसा उसके कुछ बाद मार्केट में आया। इन दोनो तकनीको में पिन को खाते धारक के खाते से सीक्रेट तौर पर जोडा गया था।किसी मानक
ए टी एम सिस्टम मे पिन की कैलकुलेशन कुछ इस प्रकार से होती है।
किसी भी खाते के आखिरी पांच डिजिट ले लीजिये, और उन्हे वैलिडेशन डेटा के ११ अंको से पहले जोड दीजिये। सामन्यत: ये खाते के नम्बर के पहले ११ अंक होते हैं। ये ११ अंक कार्ड की इश्यू डेट का एक फ़न्क्शन भी हो सकते हैं, किसी भी सूरत में अंत में आपके पास आने वाले १६ अंको की वैल्यू ही एन्क्रिप्शन कलन विधि (Encryption Algorithm) होती है। जो कि आई बी एम और वीसा के लिये DES होती है। (US Data Encryption Standard algorithm) और इसका एन्क्रिप्शन १६ अंको की एक की के द्वारा किया जाता है जिसे हम लोग पिन के रूप में जानते हैं। पहले चार अंको को दशमलवीकृत (Decimalised) कर दिया जाता है, और आखिरी चार अंक ही साधारण पिन होते हैं। कई बैंको के द्वारा सिर्फ़ साधारण पिन ही इश्यू किये जाते है। यद्यपि कई बैंको ने आज हमे ये सुविधा प्रदान कर दी है कि हम अपनी पसंद के पिन को चुन सकें।ये चार अंको की संख्या आफ़सेट कहलाती है, जो कि साधारण पिन में जोड दी जाती है जिससे कि ग्राहक अपने ए टी एम से व्यवहार कर सके।
कबतक खेलोगे खूनी होली
Monday, May 12, 2008
३३% का डंका
आजकल महिलाओ को विधान्सभाओ और संसद मैं ३३% आरक्षण पर बहाश जोरो-सोरो पर है । महिला समाज पूरी ताकत झोके है की किसी भी तरह ये पास हो जाए । पर समाज मै एक तबका ऐसा भी है जो ५०% आरक्षण लिए महिलाओ को भटका रहा है । ये वही लोग है जो नही चाहते की महिलाओ को कुछ भी मिले । मैं ये नही कह रही की महिलाये ५०% की हकदार नही। बिल्कुल है । जब हम मर्दो के बराबर या शायद उनसे भी कुछ ज्यादा काम करती है तो क्यों न मिले हमे भी उनके बराबर अधिकार । पर हमे ये भी नही भूलना चाहिए की फालतू की बहाश से कुछ भी हासिल नही होता। ठीक वैसे ही की सरकार ने कहा सड़क बनवायेंगे तो गाव के गाव लड़ पड़े । सड़क हमारे यहाँ से जाए ,हमारे यहाँ से और सड़क कही न जा सकी । बिजली देने को कहा तो फिर वही बहश और सारा जीवन अंधेरे मै ही कट गया। सो बहनो अभी जो मिल रहा है जल्दी झपट लो. इश्से महिलाओ का हौश्ला तो बढेगा ही साथ ही साथ तागत भी बढेगी और आगे की लड़ाई भी कुछ आसान हो जायेगी। क्युकी ३३% आरक्षण मिलना यानी आवाज उठाने वालो की संख्याओ मै और इजाफा होना। तो क्या चाहती है आपलोग सबकुछ या कुछ भी नही ?
"माँ "
चोखेरबाली ने दिया एक स्त्री को धोखा
कुछ दिनों पहले मैं चोखेरबाली से जुड़ी हुई थी पर २ दिन बाद ही उन्होंने मुझे अपने ब्लॉग से निकाल दिया । जानते है क्यों? क्युकी मेने एक साथ २ - ३ पोस्ट कर दी थी। जबकि मेरी कोई गलती नही थी । क्युकी उन्होंने अपने नियमो के बारे मैं कही भी नही लिखा है। इसके लिए मेने उनसे माफ़ी भी मांगी । पर दोबारा उनका कोई जवाब नही आया। चोखेरबाली जो अपने को एक स्त्री का ब्लॉग कहता है क्या उन्होंने मेरे साथ यानि (एक स्त्री ) के साथ धोखा नही किया ? तो क्या सही मायनों मै वो कर पायेंगे स्त्री को धोखा देने वालो का पर्दाफास , क्या दिला पायेंगे स्त्री को धोखा देने वालो को सजा , या फिर उठा पायेंगे स्त्री को धोखा देने वालो के ख़िलाफ़ आवाज। यही नही वहा मेरी एक पोस्ट कुछ समय के लिए रह गई थी . जिसका नाम था "बलात्कार"। जो आप मेरे ब्लॉग मै भी पढ़ सकते है। उसपर मुझे ४-५ कमेंट मिले हुए थे। एक सज्जन ने लिखा था साधारण बक्बास कविता है जिसके जरिये जल्दी प्रसिद्दी पाने की kosish कर रही है। किसी ने लिखा था कमला भंडारी koan है भड़ास पर भी है। तो किसी ने कमला भंडारी koan है। एक सज्जन एषे भी थे जिन्होंने लिखा था बिल्कुल फूहड़ कविता है । एक शालीन स्त्री बार - बार बलात्कार शब्द का प्र्यौग कैसे कर सकती है?
वहा तो मैं इन सवालो का जवाब चाहकर भी नही दे पाई क्युकी जैसे ही मेने अपने जवाब लिखकर पोस्ट की मेरी पोस्ट ही हटा दी गई। इस तरह मन की भड़ास मन मैं ही रही गई। ज्यादा दिनों तक भड़ास को मन मैं रखना मेरे लिए मुश्किल था सो सारे सवालो के जवाब यहाँ लिख रही हूँ।
कमला भंडारी एक साधारण इंसान है और कुछ नही। मैं कोई कवियत्री तो नही शायद इसलिए शब्दों का इस्तेमाल उस तरह नही कर पाई जिस तरह एक कवियत्री कर सकती है , क्युकी मेने लिखना अभी - अभी शुरू किया है । पर मेरी समझ मै ये बात नही आ रही की ज्यादातर पुरुषो को ही आपत्ति क्यों है , शायद इसलिए की बलात्कार शब्द पुरुषो का घिनोना चेहरा जो दिखा देता है । सभी आदमियों का तो नही पर ९०% तो एषे ही है। शायद बलात्कार शब्द सुनते ही पुरुषो को अपने आप पर शर्म आजाती है । सच तो ये है की मर्द्जात मेरे शब्दों को पचा नही पा रहा है। और जहा तक बात है की शालीन महिला इस शब्द का इस्तेमाल केसे कर सकती है तो जरा ये बताइए की जब आपलोग किसी लड़की/महिला को घूरते है ,उसके उप्पर अपनी gandi najre डालते है ,cheetakasi करते है तब क्यों नही देखते की koan सालिन है koan नही। दोस्तो किसी ने कहा है की मै भड़ास पर भी हूँ । तो ये बात अच्छी तरह जान लो की मैं हर उस जगह आपको मिलूंगी जहा मैं अपनी बात कह सकू ,समाज को उसका असली रूप दिखा सकू चाहे वो भड़ास हो ,चोखेरबाली हो या कोई और जगह क्यों न हो।
क्या आप कर सकते है इनकार ?
इस बात से कतई इनकार नही किया जा सकता की आज के कंप्यूटर - आधारित समाज मै हम इंजिनीअर तो बखूबी बना पायेंगे , लेकिन लेखक और कलाकार नही । यानी हम एक ऐसा समाज बनायेंगे , जहा न विचारो की कोई भूमिका होगी और न संवेदना के लिए कोई जगह।
Wednesday, May 7, 2008
एक पैगाम ( हिजडा समाज ) के नाम
Sunday, May 4, 2008
आखिर कहाँ है मेरा "अपना घर"
गुड्डे ,गुडियों से खेला करती थी
खेल छोड़ो कुछ काम करो
कल अपने घर जाना है
बस सब कहा यही करते थे,
फिर जब थोडी बड़ी हुई
पढने की तब बारी आई,
पढो मगर सब काम करो
कल अपने घर जाना है
फिर वही रट सबने दोहराई थी,
बचपन छूटा काम किया,
पढ़ा मगर काम
सुबह- शाम किया।
जब किशोर अवस्था आई
सबने ब्याह की रट लगाई
अब अपने घर जाना है
थोड़ा नही सारा धयान धरो
मेने भी एक सपना बुन लिया
मेरा भी एक ''घर'' होगा,
सबसे ये सुन लिया
सपनो मै रंग सारे भर दिए
जिंदगी के कुछ नए,
रंग मेने भी चुन लिए
फिर ब्याह हुआ,
उस घर को छोड़
इस घर आ गई
एक संतुस्टी सी मन मै लहराई
खूब निहारा,खूब सराहा
सोचा चलो "अपना घर " मिल गया
सपनो के उन रंगो को
जीवन मै जब भरना चाहा
सब चीख उठे ,सब बोल उठे
अरे ! ये क्या कर डाला
अपने घर मै क्या
यही सीखकर आई हो
दुश्रे के घर कैसे रहना है,
क्या अभी तक,
यह समझ नही पाई हो
माथा ठनक उठा ,सर चकराने लगा
कुछ ही पलो मै मानो
दम सा निकलने लगा
" अपना घर"
कौन सा "अपना घर"
उस घर वाले कह्ते
ये है मेरा "अपना घर"।
और इस घर वाले कहते ,
वो है तेरा "अपना घर"
न वो घर मेरा
न ये मेरा है
आखिर कहाँ है मेरा
"अपना घर"
lekhika -----kamla bhandari
Tuesday, April 22, 2008
बड़ी शातिर है ये दुनिया
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना धुंड लेती है ।
बबली तेरो मोबाइल , वह रे तेरो स्टाइल
चाहे बबली हो या बब्लू , उनके पास कुछ हो या ना हो पर मोबाइल जरुर होगा . लड़किया चाहे पर्श मै मेकप का सामान लाना भूल भी जाए पर मोबाइल कभी नही भूलती .लड़के चाहे पर्श जो उनको सबसे प्रिय है वो तक भूल जाए पर मोबाइल न बाबा ना ---नेवर .बच्चे , बुड्ढे और जवान मागे बस (मोबाइल).मम्मी का पापा का हम सबका प्यारा मोबाइल.और यही नही जिनके पास होता है वो और अच्छा चाहते है ---------ये दिल मांगे मोरे .बाप रे आज की दुनिया कितनी बातूनी हो गई है . ,दुश्रो को देने के लिए भले ही एक रुपैया ना हो पर मोबाइल के लिए हजारो रुपिये पानी की तरह बहा देते है और कोई गम भी नही . आज जिधर देखो लोग बातें बस बातें करते नजर आते है . कोई सड़क के किनारे खडा है , कोई सड़क के बीच भी मोबाइल को कानो से चिपकाए है.
अपनी जान की उतनी परवाह नही है जितनी मोबाइल की . सात से सत्तर के पास भी मोबाइल आम बात है , मोबाइल की दौड़ मै गरीब अमीर का कोई भेद नही , भेद है तो बस सस्ते मंहगे का. एक छोटे से बच्चे को भी खेलने को मोबाइल ही चाहिये और अस्शी साल के बुड्ढे को भी चाहे दांत हो या ना हो, मोबाइल हमेशा रहेगा.
जय हो मोबाइल जी की ।
जान से प्यारा मोबाइलसबसे न्यारा मोबाइल हुमारा प्यारा मोबाइल वैशे मोबाइल जी है बड़े काम की चीज.कुछ भी काम हो चुटकी मै हो जाता है मोबाइल से . और तो
और त्यौहार भी अब मोबाइल पर ही मना लिया जाता है .पहले तो कुछ ही गिने -चुने त्यौहार होते थे पर मोबाइल जी के आते ही इनकी संख्या लाखो मै पहुँच गई है.
आज ये डे ,कल वो डे ,परसों न जाने कौन सा डे ? लोग इतना खुश दोस्त से मिलने पर भी नही होते जितना उश्से मोबाइल पर बातें करने और मेसेज करने पर होते
है ।
वाह रे मोबाइल तेरी महिमा अपरम्पार है।
राजा को रानी से प्यार है मोबाइल पर
सूरज चाँद का यार है मोबाइल परखाना- पीना , सोना- जागना, उठना- बैठना सब भूल गए बस याद रहा तो मोबाइल.अब लड़के को ही देख लो ,घर वालो के काम के लिए चाहे एक मिनट का टाइम ना हो पर अगर प्रेमिका ने मोबाइल घुमाया वो भी मिस कॉल ,मजनू तुरंत हाजिर. और लड़की वो भी कम नही . माँ ने कहा घर का काम करो तुरंत कह दिया पढ़ रही हूँ . ,मजनू का मिस कॉल आते ही (जो उनका कोड नम्बर है) माँ से कह दिया की सहेली के घर पढने जा रही हूँ .चल दी अपने मजनू से मिलने.यही तक सीमित नही है मोबाइल जी की दास्ताँ. अगर कुछ देर के लिए सिग्नल चले जाए तो दुनिया
उलट-पलट हो जाती है ,पागल हो जाते है ,इतने परेशान हो जाते है जैशे सब -कुछ उजड़ गया हो. और अगर कही कुछ दिक्कत आ जाए तो लगे खनख्नाने कॉल-सेंटर.वैसे चाहे कुछ भी कहो ,पर है बहुत ही सुविधाजनक यह मशीन .एकदम अल्लादीन के जादुई चिराग की तरह .किसी से कुछ कहना हो तुरंत कह दिया ,किसी से कुछ पूछना हो ,बताना हो तुरंत कह-पुच लिया. लैला या मजनू को कुछ भेजना हो किसी पास पड़ोसी से कह दिया वो भी तुरंत हो गया .सबकुछ फ़टाफ़ट. भई बहुत ही फायदेमंद है यह पर नुकशान भी कुछ कम नही.....................
१)बिना जाने-पहचाने बतियाने लगे ,खा ली जीने मरने की कसम और फिर खा गए धोका ,लुट गया सब कुछ।
२)बात-बातो मै खोल दिए घर के सारे राज और हो गया घर साफ।
३)हम तो बतियाते-बतियाते छोड़ आए वो गलिया पर वो ना आया।
४)क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार मै।
५)मोबाइल आते ही जाने कौन कौन कंपनिया लगी फ़ोन खंख्नाने ।
६)रात की नींद टूटी दिन का चैन गया।
७)अपने पास होते हुए भी दूर हो गए।
८)त्योहारों का रंग उड़ गया।
९)पैसे पानी की तरह बह गए और हाथ फिर भी खाली।
१०)दिल-दिमाग की बिमारी हुई सो अलग।
११)आनंद धुन्दने चले थे बेचैनी ,मायुशी, ले आए।
१२)दोस्त -दोस्त ना रहा ,प्यार -प्यार ना रहा।
अगर किसी को फायदा हुआ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ कम्पनी वालो को.सो डीअर बातो मै न जाओ ,अपनी अक्कल लगाओ.
Monday, April 21, 2008
भगवान् बसते है कहाँ ?
देखती हूँ की
हजारो की संख्यावो मै
मन्दिर बसते हैं
पेडो की तलियो मै
बड़ा अच्छा लगता है की
भगवान् है हर जगह
श्रद्धा से सिर
खुद ही झुक जाता है
उन पेडो की तलियो मै
चार ईट लगा दिए और
बन गया मंदिर
जगह - जगह गलियों मै
पर आज दुख होता है
बहुत देखकर यह की
कूड़े के ढेर पड़े है
नालिया बह रही है
उन मंदिरों की गलियों मै
नमन सब करते है
फूल और कुछ
चढावा भी चढाते है
पर कोई नही तैयार
सफ़ाई के लिए
झाडू मारे गलियों मै
लोग भी क्या खूब है
की दान देते है हजारो
बडे मंदिरो मै
श्रद्धा दिखाते है पर
अपने घर के आगे वाली
गली के मंदिर मे
सरकार भी तो खूब है
बडे मंदिरो की देखभाल के लिए
जुटी रहती है हमेशा
पर गलियों के मंदिरो की
अरे ! क्या भगवान् केवल
बडे मंदिरो मै दर्शन देते है
और छोटे मंदिरो का क्या
क्या उन्हें यू ही छोड़ देते है
नही ना !
भगवान् तो बसते है हर जगह
तो फिर क्यों ये
दिखावा और भेद भाव है
और जब तुम
दिखावा और भेदभाव करोगे
तो सच्चे भगवान् को
कैसे पावोगे ।
Sunday, April 20, 2008
PAIN
kitne dikhawati ho gaye hum
har wah kaam karte hai , har wah dikhawa karte hai jisse hume lagta hai ki mata khush ho jaayegi. naw din brat rakhne ke baad ,pooja karne ke baad mata ke roopo ko (yaani betiyo ko ,ladkiyo ko)ghar par bulate hai , unke charan dhote hai ,unhe bhojan karate hai aur dakshina bhi dete hai .aur hume lagta hai ki mata humse khush ho jaayegi.
par kya insabse hogi mata khush ? kyuki unke rupo ko to hum janam lene se pahle hi maar dalte hai.
jin ladkiyo ko hum poojte hai unki hi garv hattya kar dete hai.bechariyo ko to janam bhi nasib nahi hone dete .maar dalte hai pet me hi . jab hume betiyo se pyar hi nahi hai , jab hume unki jarurat hi nahi hai to kyu poojte hai ushe ? kyu karte hai dikhawa ?
aur hum ye kyu nahi sochte ki hume bhi to kisi ki beti ne , kisi ma ne janm diya hai . humara astitva kewal purush se hi to nahi hai na . aur agar ishi tarha ladkiyo ki bhron hatya hoti rahi to kya is duniya ka astitva rah payega?
YA PHIR ,
aur cheejo ki tarha bacche peda karne ke liye bhi " MACHINE " banwayenge ?
MAI
NA HI MUSALMAAN
NA MAI SIKKH HUN
NA HI ISAAI
MAI TO HUN
KEWAL
EK SAADHARAN INSAAN
Saturday, April 19, 2008
अनपढ़ की व्यथा
मैं अनपढ़ हूँ
सब कहते है की
मै अनपढ़ हूँ
मै भी कहती हूँ की
मै अनपढ़ हूँ
क्युकी पढा नही है मेने
कभी किसी स्कूल मै
देखा नही किताबो का ,
मुह भी कभी
मेरे लिए काला अक्षर
आज भी है भेंस बराबर
तभी तो सब कहते है
मै अनपढ़ हूँ
जब भी सोचती हूँ
पढ़ - लिखा इंसान कैशा होता है
तब सब कहते है
वह बडे - बडे स्कूल मै पढता है
चतुर , चालाक व बुद्धिमान होता है
क्या उन्हें पढ़ - लिखा कहते है
जो बडे - बडे स्कूल मै पढे
फिर भी हमे पढा न सके
हमारी तो छोड़ दो
जो अपनों के भी हो न सके
क्या उन्ही को कहते है पढ़ - लिखा
किताबे जिन्होंने चाटी खूब
और गरीबो का खून भी
वो चाट गए
हजम कर गए देश की दौलत
कागजो मै सारा काम कर गए .
मैं जानती हूँ की
मै अनपढ़ हूँ
क्युकी मै स्कूल नही गई
जाती भी कैसे
गरीब हूँ
पैसे नही थे उतने
अफ़सोस है मुझे भी, दुख है की
मै स्कूल नही गई
पर सोचती हूँ आज
क्या हर स्कूल जाने वाला
जिंदगी का पाठ भी सीख पाता है
शायद नही ,
क्युकी जो पाठ सीखा है मैंने
भूख से , गरीबी से ,
अपने उप्पर हुए अत्त्याचारो से
यही तो है जिंदगी का पाठ
जो मेने सीखा है हालातों से
शायद वो कभी सीख ना पाए
वैसे मै आजकल
दस्तखत करना सीख रही हूँ
फिर भी सब कहते है
मै अनपढ़ हूँ ।
written by :kamlabhandari
my blog : kamlabhandari.blogspot.com
Wednesday, April 16, 2008
बलात्कार
तन का बलात्कार हुआ
मन का बलात्कार हुआ
एषा लगता है मानो
जिस्म के हर अंग का
बलात्कार हुआ
तन को बिन मर्जी के छुआ
तन का बलात्कार
मन को बिन मर्जी के छुआ
मन का बलात्कार
एषा लगता है मानो
हर अंग का बलात्कार हुआ
जरुरी नही की बलात्कार हमेशा
chu कर हो
बिना छुए भी कई बार
आंखो से बलात्कार हुआ
बाहर ही नही घर मै भी
औरत की साँसों का
उसकी khusiyo का
का जीवन भर बलात्कार हुआ
Tuesday, April 15, 2008
कोन धरम है प्यारा जो बन सके हमारा .
जो बन सके हमारा .
कोन धरम है प्यारा
जिसे कह सकू मै
ये है मेरा
सब कहते है
मै हिन्दू हूँ
पर मै कैसे कहू
की मै हिन्दू हूँ
क्युकी कर नही पाती
मै पूजा
उनकी तरह
चाहती हूँ
पर नियम नही रख
पाती हूँ
छू लेती हूँ भगवान् को
जब मन चाहता है
उन दिनों मै भी
जिन दिनो एक लड़की को
भगवान् के पास
जाने से भी
किया जाता है मना
क्या करू मै
ना भी छूना चाहू फिर भी छूना पड़ता है मन्दिर को
जब कोई कहता है
मन्दिर से माचिस लाने को
क्या कहू , कैशे कहू
की आज हूँ मै
उनसे अलग
सच कहू तो
कहना नही चाहती
इश अपमान को सहना नही चाहती
क्यों सहू मै गलती क्या है मेरी
ये नही है मर्जी मै हमारी
तो कैशे कहू की मै हिन्दू हूँ
तो कोन हूँ मै
क्या मै मुस्लिम हूँ
नही मै वो भी नही
क्युकी वो भी तो है
नियम के पक्के
और मै
बहुत ही कच्ची
और वहाँ तो
रहती है औरत
परदे मै पर मै तो
उड़ना चाहती हूँ
मन की मर्जी
करना चाहती हूँ
नही है मुझे
परदा प्यारा
वो बाँध देगा
जीवन सारा
तो कोन हूँ मै
क्या मै सिक्ख हूँ
क्यूंकि उन्ही की तरह
मुझे है प्यारी
मेरी खुद्दारी
पर शायद मै
वो भी नही
क्यूंकि सच्चे पंजाबी भी
नियम के पक्के होते है
और नियम
जिनसे मै कतराती हूँ
तो कोन हूँ मै
क्या मै इसाई हूँ
नही मै वो भी नही
क्युकी वो है
पवित्र बाइबल को मानते
और बाइबल
ध्यान देती है
सफ़ाई पर बहुत
वेसे सफ़ाई
मुझे भी है प्यारी
करती भी हूँ
रोज
घर की , कपड़ो की
पर चाहकर भी
कर नही पाती
मन मै भरी
गंदगी की सफाई
और बाइबल
इसी सफ़ाई को है
मानती
समझ नही आता
आख़िर कोन हूँ मै
केसे करू भेद
की कोन धरम है
प्यारा
जो हो सके मेरा
सबके चेहरे
दिखते है एक से
वही दो कान , दो आँखे
एक नाक , एक मुह
और खून का रंग भी
वही गहरा लाल
और करते भी है सब
उसी अद्रश्य
इश्वर , अल्लाह , वाहेगुरु , जीज़स
की पूजा
सब है एक से
फर्क है तो
चमरी का
पर रंग - बिरंगे
चमरी वाले
तो हर धरम मै है
कैशे करू भेद
की कोन धरम है
प्यारा
जो बन सके मेरा ।
Thursday, April 10, 2008
मै देखती हूँ सपने
कुछ खुली आंखो से
कुछ बंद आंखो के सपने
कुछ ख़ूबसूरत तो
कुछ बद्सुरात सपने
मै देखती हूँ सपने
कुछ प्यारे ,कुछ सबसे न्यारे
कुछ सुख देने वाले
कुछ दुःख देने वाले सपने
मै देखती हूँ सपने
कुछ सफ़ेद , कुछ काले सपने
कुछ अपनों के , कुछ परायो के सपने
कुछ इश दुनिया , कुछ उष दुनिया के सपने
मै देखती हूँ सपने
जानती नही की पूरे होंगे
ये कभी हमारे होंगे
कभी हंसाते कभी रुलाते
फिर भी मै देखती हूँ सपने
पुरूष की कहानी स्त्री की जुबानी
पुरुष का मन कहता है
मै भी समाज का हिस्षा हू
औरो की तरह ,
बात करता है आज समाज
चर्चा करता है
औरतो की , लड़कियों की
बच्चो की , बुद्धों की
अमीरों की , गरीबो की
सबकी करता है
पर करता नही वो
बात कभी (पुरुष की ) मेरी
क्या मै नही समाज का हिस्षा ?
पुरुष हू तो क्या हुआ
क्या मैं इंसान नही
तुम ही तो कहते हो
मै समाज का अहम् हिस्षा हू
फिर क्यों हमेशा मुझसे नजर चुराते हो ।
चर्चा करते हो
औरत की रक्षा कौन करेगा
कौन दिलायेगा उनको हक़ ,
उनका कोटा कौन बढायेगा ,
उनकी लड़ाई कौन लड़ेगा
और महिला दिवश कैशे मनाया जायेगा ।
मैं ये नही कहता
की मुझे भी है
पुरुष दिवश की जरुरत ,
पर पुरुष हू तो क्या हुआ
मै भी तो एक इंसान हू
क्या नही है मुझे भी
रक्षा की , सहानभूति की ,
मदद की जरुरत ।
स्त्री के लिए लड़ने तो
सब आते है
पर मुझे हमेशा ही
अकेला क्यों छोड़ जाते है ?
अगर आशु मै अपने दिखाता नही
दख भी किसी को बताता नही
तो क्या नही है
मुझपर भी चर्चा की जरुरत ?
जानता हू समाज मै
स्त्रिया है काम , पुरुष है ज्यादा
और बनता भी है वो अपने को
सबसे कुछ ज्यादा
पर इंसान होने के नाते
मुझपर भी तो है
चर्चा की जरुरत
मुझे भी है आपके प्यार की जरुरत।
कभी - कभी
की मै बेटी हूँ
पर क्या बेटे को भी होता है
की वो बेटा है
मै रोती हू कभी - कभी
की मै बेटी हूँ
पर क्या बेटा भी रोता है
की वो बेटा है
मै हंसती हू कभी - कभी
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी हँसता है
की वो बेटा है
मै सुनती हू गाली कभी - कभी
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी सुनता है
की वो बेटा है
मै सुनती हू ताने हमेशा
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी .......................
ये शादी बड़ी निराली है
किसी की आबादी तो
किसी की बर्बादी है
ये शादी बड़ी निराली है
सपने ये दिखाती है तो
कभी उनमे आग भी लगा जाती है
किसी को समानित तो
किसी को अपमानित कर जाती है
ये शादी बड़ी निराली है
उम्र का बन्धन नही कोई
कभी भी हो जाती है
किसी को ग्राहक तो
किसी को सामान बना जाती है
ये शादी बड़ी निराली है
किसी के जीवन को सुखी तो
किसी को जीवन भर दुखी कर जाती है
किसी को राजा तो
किसी को रंक बना जाती है
ये शादी बड़ी निराली है
किसी की आग बुझा जाती है तो
किसी को आग मै झुलसा जाती है
ये शादी बड़ी निराली है ।
Saturday, April 5, 2008
देवी नही इंसान हू मै
हमारे देश मै औरत को कई नाम दिए गए है . उशे कभी 'देवी' के रूप मै पूजा जाता है तो कभी 'अबला' के नाम से जाना जाता है . कोई कहता है नारी ही परिवार को बनाती है और कोई कहता है नारी ही परिवार के टूटने का कारण होती है . कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ . हमारे देश मै एक औरत को इतने नाम दिए गए है की आज समाज ही नही जानता की उसकी असली पहचान क्या है ? कभी लगता है वह देवी है इसलिए सब कुछ कर सकती है तो कभी लगता है की वह अबला है , शक्तिहीन है जो कुछ नही कर सकती. मुझे लगता है की यही कारण है की आज भी हमारे देश मै नारी , "एक औरत" अपनी पहचान ढूँढ रही है , जो सायद इन नामो मै कही खो गई है . हम 'पुरुषो' के बारे मै उतनी चर्चा नही करते जितनी 'औरतो' के बारी मै 'क्यों'? अगर एक पुरूष कुछ भी 'सही या ग़लत' करे , उसकी तरफ़ इतना ध्यान नही दिया जाता . पर एक औरत का पल्ला भी अगर ज़रा सा खिसक जाए तो बबाल खडा हो जाता है या यू कहू की बबाल खडा कर दिया जाता है , क्यों ? हम ये क्यों नही समजते , या समझना चाहते की जिस तरह पुरूष एक आम इंसान है उशी तरह एक औरत भी तो आम इंसान ही है . फिर क्यों हम कभी उशे 'देवी ' तो कभी ' अबला ' कहकर पुकारते है ? क्यों कहते है की सुख देने वाली और दुःख देने वाली वही है . परिवार तो सबसे मिलकर बनता है तो क्यों अकेले ही उश्पर ये बोज ढाल दिया जाता है ? यह समाज केवल औरत का ही तो नही है , बल्कि मै कहूँगी की इश समाज मै आज भी औरत कुछ नही है ,फिर क्यों ये समाज औरत को बड़े-बड़े नाम देकर उशे भ्रम मै डाले है ? और जब इशी भ्रम मै आकर वह कुछ करना चाहती है तो उशे "अबला" कहकर फिर सकती -हीन कर दिया जाता है . ये सब ज्यादातर हमारे ही देश मै होता है . क्यों होता है ? या क्यों हो रहा है पता नही ? हम आज अंग्रेज देशो से अपनी बराबरी कर रहे है या करना चाहते है , और अपना देश छोड़कर उनके देशो मै बसना चाहते है . जिस कारण बच्चे के पैदा होते ही उशे अंग्रेजी बोलना सिखाया जा रहा है . जब हम अपनी जड़ को ही अंग्रेज बनाने पर तुले हुए है तो फिर क्यों हम उन्ही की तरह औरत को "आजाद" नही कर देते । क्युकी हम केवल और केवल अपने फायदे के बारे मै ही सोचते है . कही मर्द्जात यह तो नही सोच रहा की अगर औरत को आजाद कर दिया तो जिमेदारी उनके कंधे पर भी आ जायेगी ,केवल बाहर की ही नही घर की भी और वे इश जिम्मेदारी को उठाने मै अपने को सक्सम नही समजते इसलिए डरते है औरत को आजाद करने से.मै बस यही कहना चाहती हू की औरत को देवी या अबला या कोई भी और नाम मत दो . मत भात्काओ उशे की वह अपना असली रूप अपनी असली पहचान ही भूल जाए . उशे अपनी ही तरह एक साधारण इंसान समझो . केवल इंसान . कर दो उशे अलग - अलग नामो के भंधन से आजाद . "आजाद " एकदम "आजाद". और फिर देखो वह भी तुम्हारी ही तरह एक इंसान ,"साधारण इंसान " नजर आएगी जो ना अबला होगी और ना देवी .फिर ना ही पुरूष -स्त्री के उप्पर चर्चा होगी ना फालतू की कोई बहस , न कोई पुरूष ये प्रशन उत्था सकेगा की स्त्री को अहमियत दी जाती है उन्हें नही और ना कोई स्त्री ये कह पाएगी की यह पुरूष का समाज है उश्का नही.सब खुश रहेंगे ,और हम सब चाहते भी यही है ना.ख़ुद जियो औरो को भी जीनो दो ,यही तो एक जिंदगी का रास्ता, तुम्हे अमन का शान्ति का वास्ता.......................
दिल मे मेरे भड़ास है
कुछ कहने की , कुछ कहलवाने की
कुछ करने की , कुछ करवाने
की कुछ जानने की , कुछ पहचानने
की दिल मे मेरे भड़ास है
man ke अन्दर छिपी बातो परमंद-मंद मुस्काने की
और कुछ बातो पर आंसू बहाने की
ख़ुद को समझने की और समझाने की
दिल मे मेरे भड़ास है
किसी पर नकाब डालने की
किसी का उतारने की
किसी को रुलाने की कभी चुप कराने की
दिल मे मेरे भड़ास है
अपना गुस्षा दिखलाने की किसी का देखने की
अपनी हंशी दिखाने की किसी की देखने की
दिल मे मेरे भड़ास है
किसी को चिढाने की कभी ख़ुद भी चिढ जाने की
किसी को सुधारने की कभी ख़ुद भी सुधर जाने की
दिल मे मेरे भड़ास है
अनसुलझी बातो को सुलझाने की
अनकही बातो को कहलवाने की
मन की गंदगी को भगाने की
हा है मेरे दिल मे भड़ास
और आपके ?
Thursday, April 3, 2008
जुर्म की दुनिया ,जुर्म का school
आज अपराधियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है , ये अपराधी कोई और नही बल्कि हमारे ही आसपास के लोग है , हमारे ही दोस्त है , हमारे
ही रिश्तेदार है या हमारे ही पड़ोसी है . आदमी आज इतना मतलबी , लालची , बेईमान और क्रूर हो गया है की अपने मतलब के लिए वो अपने बाप को
भी मौत के घाट उतार देता है ।
आज हर आदमी के मुह से यही सुनने को मिलता है ------------------(बाप बड़ा न बहिया , सबसे बड़ा रुपैया) कोई भी बाही को बाही नही समज्ता , दोस्त को दोस्त नही समज्ता , हर कीमत पर बस अपना मतलब निकालना कहता है फिर उशे किसी की जान ही
क्यों ना लेनी पड़े .और इस तरह पहुँच जाता है वह जुर्म की दुनिया मै और खानी पड़ती है जेल की हवा .पर क्या जेल जाने के बाद , सजा काटने के
बाद वह सुधर जाता है ? क्या होता है उशे अपने किए पर पछतावा ? नही , बल्कि .............." एक बार जेल की सजा काटने के बाद मुजरिम पहले
से भी ज्यादा चालाक और होसियार बन सकता है . वह दुश्रो का नाजायज फायदा उठाने से और जुर्म करने से बिल्कुल भी बाज नही आता .कहते है जेल
जुर्म का स्चूल है . सही कहते है क्युकी "ज्यातर मुजरिम तजुर्बे से ऐशी खतरनाक बातें सीखते है , जो समाज नही caahtaa की वो सीखे ." जेल
मै केदियो के पास अप्रादी बनने का वक्त- ही - वक्त होता है . इसके अलावा ,वे क़ानून को चकमा देने मै उस्ताद हो जाते है . जेल मै वह दुश्रे अपराधियों
से नए - नए हत्कंडे सीख लेता है और दुश्रो को भी कुछ हत्कंडे सिखा देता है ."एक जवान गुनाह करता है , पर जेल की हवा खाने के बाद वह जुर्म का
'गुरु' बन जाता है." केवल १००० मै से १० मुजरिम ही एषे होते है जो जेल की हवा खाने के बाद सुधर जाते है बाकी ..............................................बड़े उस्ताद बन
जाते है .कई अपराधी एषे भी होते है जिन्हें सबूत ना मिलने के कारण छोड़ दिया जाता है , इसलिए वे इश नतीजे पर पहुँच जाते है की जुर्म करना
फायदेमंद है और वे और भी hateele बन जाते है और घुसते चले जाते है बुराई के समुन्दर मै ।
जुर्म की दुनिया मै जाना मजबूरी है, या अपनी मर्जी से ?
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कुछ लोगो को लगता है की इश संसार मै जीने के लिए , उनके आगे सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वह है , जुर्म की दुनिया मै जाना . क्या यह सच है ? हम सोचते है की चंचल मन वाले , गरीबी की चक्की मै पिस रहे या फिर जिंदगी से हार चुके लोग ही जुर्म की दुनिया मै जाते है . पर sach नही है यह . अमीर , पढे - लिखे , नामी
लोग भी आज जुर्म की दुनिया मै पहुँच चुके है . इश्से यही नतीजा निकलता है की ............लोग अपनी मर्जी से जुर्म करने का चुनाव करते है .
"जुर्म........की 'जड़' एक इन्शान के हालत नही बल्कि उसकी अपनी soch होती है . " हम jeshaa सोचते है , weshaa ही करते है . हम
कोई भी काम करने से पहले सोचते है , उशे करते वक्त सोचते है और उशे पूरा करने के बाद भी सोचते रहते है . इसलिए हम कह सकते है की " मुजरिम बेबस नही होते बल्कि वे दुश्रो को बेबस बनाते है और जुर्म की दुनिया मै कदम रखने का चुनाव अपनी मर्जी से
करते है ". "जिंदगी की बेहतर बनाने के चक्कर मै बहुत से सहरी जवानों ने (अपराध को चुना अपना kariyar " .भगवान् ने इंसान को आजाद मर्जी
के साथ बनाया है , इसलिए वह मुश्किल - से - मुश्किल हालत मै भी अपना रास्ता ख़ुद चुन सकता है . इसमे कोई दो raai नही है की लाखो लोग
हर दिन तंगहाली मै जीते है और समाज मै हो रहे अन्याय का सिकार होते है . या फिर हो सकता है , वे एषे परिवार मै रहते हो जिनमे लड़ाई होना
रोज की बात है . मगर फिर भी , ये लोग कुख्यात अपराधी नही बनते . "जुर्म बुरे maahol , लापरवाह माँ - बाप ,...............या बेरोजगारी
की वजह से नही होते , बल्कि अपराधियों की वजह से होते है । इसकी सुरुवात एक इंसान के दिमाग से होती है , ना की समाज के बुरे हाल से।
" जुर्म की 'जड़'.........................(मन )
------------------------------------------
बाइबिल बताती है की एक इंसान के पाप की वजह उसके हालत नही , बल्कि उसका मन होता है । " जब एक इंसान अपनी किसी बुरी इच्छा के बारे दिन - रात सोचता रहता है , तू वह दरअसल उशे अपने दिल मै पनपने दे रहा होता है . फिर यह इच्छा उष पर इश कदर हावी हो जाती है की मोका मिलते ही वह खतरनाक काम कर बेठता है ।
उदहारण के लिए.........................जब एक insaan कभी - कभार अश्लील तस्वीरे देखता है , कुछ समय बाद उष पर ग़लत काम करने का जूनून सवार हो सकता है . फिर एक दिन इश जूनून मै आकर वह ghinoni हरकत कर सकता है . यहाँ तक की इसके लिए वह जुर्म का रास्ता तक इक्तियार कर सकता है . आज दुनिया फिल्मो , wediyo गेमो , gande साहित्य , इंटरनेट , मोबाइल और वो जाने - माने हस्ती jinkaa charitra सही नही है के जरिये जुर्म की दुनिया मै जा रहे है .इन सब चीजो के रंग मै रंग रहे है . उन्ही का अनुसरण कर rahe है . इनसब चीजो मै जो अच्छी बातें है वो उनकी तरफ़ ध्यान नही dete पर ग़लत चीजो को तुरंत अपना लेती है और अपना रही है . आज इनसब चीजो के फायदे कम नुकशान ज्यादा नजर आ रहा है .अफ़सोस उनका यही रवैया जुर्म की आग मै घी का काम करता है . लेकिन
यह जरुरी नही की हर इंसान , दुनिया के इश रंग मै रंग जाए।
क्या हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है ?
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जो इंसान एक बार जुर्म की दुनिया मै चले जाते है, मुजरिम ban जाते है , इसका यह मतलब नही की वह जिंदगी भर मुजरिम ही बना रहेगा . जैशे एक इंसान ,
जुर्म की दुनिया मै जाने का चुनाव करता है , weishe ही वह "जुर्म की दुनिया से निकलकर एक साफ-सुथरी जिंदगी जीने का भी चुनाव कर सकता है ."अनुभव दिखाते है की लोगो की चाहे किसी भी maahol मै परवरिश क्यों ना हुई हो , वे बदल सकते है , बसरते उनमे एषा करने की इच्छा हो . "जो-जो बातें सत्य हो , जो - जो बातें अच्छी हो, जो - जो बातें सुहावनी हो , जो - जो बातें sadgun की हो ,प्रसंसा की हो , प्रभु की हो ,अच्छे इंसानों की हो ,नेक इंसानों की हो उन्ही का हमेशा ध्यान करो , उन्ही के बारे मै सोचो ,उन्ही के रास्ते पर चलो.समय का sadupyog करो ,काम मै मन लगाओ .तभी तुम्हारा मन saant रहेगा ,स्थिर रहेगा.और तुम कह sakoge की हां हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है बल्कि निकल आए है .............................