Thursday, April 10, 2008

पुरूष की कहानी स्त्री की जुबानी


पुरुष का मन कहता है
मै भी समाज का हिस्षा हू
औरो की तरह ,
बात करता है आज समाज
चर्चा करता है
औरतो की , लड़कियों की
बच्चो की , बुद्धों की
अमीरों की , गरीबो की
सबकी करता है
पर करता नही वो
बात कभी (पुरुष की ) मेरी
क्या मै नही समाज का हिस्षा ?
पुरुष हू तो क्या हुआ
क्या मैं इंसान नही
तुम ही तो कहते हो
मै समाज का अहम् हिस्षा हू
फिर क्यों हमेशा मुझसे नजर चुराते हो ।
चर्चा करते हो
औरत की रक्षा कौन करेगा
कौन दिलायेगा उनको हक़ ,
उनका कोटा कौन बढायेगा ,
उनकी लड़ाई कौन लड़ेगा
और महिला दिवश कैशे मनाया जायेगा ।
मैं ये नही कहता
की मुझे भी है
पुरुष दिवश की जरुरत ,
पर पुरुष हू तो क्या हुआ
मै भी तो एक इंसान हू
क्या नही है मुझे भी
रक्षा की , सहानभूति की ,
मदद की जरुरत ।
स्त्री के लिए लड़ने तो
सब आते है
पर मुझे हमेशा ही
अकेला क्यों छोड़ जाते है ?
अगर आशु मै अपने दिखाता नही
दख भी किसी को बताता नही
तो क्या नही है
मुझपर भी चर्चा की जरुरत ?
जानता हू समाज मै
स्त्रिया है काम , पुरुष है ज्यादा
और बनता भी है वो अपने को
सबसे कुछ ज्यादा
पर इंसान होने के नाते
मुझपर भी तो है
चर्चा की जरुरत
मुझे भी है आपके प्यार की जरुरत।

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