Thursday, April 3, 2008

जुर्म की दुनिया ,जुर्म का school

आप चाहे दुनिया की किसी भी कोने मै रहे , हर दिन आको जुर्म की देह्रो वारदातों के बारे मै सुनने को मिलता होगा , जिनसे रोंगटे खड़े हो जाते है .
आज अपराधियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है , ये अपराधी कोई और नही बल्कि हमारे ही आसपास के लोग है , हमारे ही दोस्त है , हमारे
ही रिश्तेदार है या हमारे ही पड़ोसी है . आदमी आज इतना मतलबी , लालची , बेईमान और क्रूर हो गया है की अपने मतलब के लिए वो अपने बाप को
भी मौत के घाट उतार देता है ।

आज हर आदमी के मुह से यही सुनने को मिलता है ------------------(बाप बड़ा न बहिया , सबसे बड़ा रुपैया) कोई भी बाही को बाही नही समज्ता , दोस्त को दोस्त नही समज्ता , हर कीमत पर बस अपना मतलब निकालना कहता है फिर उशे किसी की जान ही
क्यों ना लेनी पड़े .और इस तरह पहुँच जाता है वह जुर्म की दुनिया मै और खानी पड़ती है जेल की हवा .पर क्या जेल जाने के बाद , सजा काटने के
बाद वह सुधर जाता है ? क्या होता है उशे अपने किए पर पछतावा ? नही , बल्कि .............." एक बार जेल की सजा काटने के बाद मुजरिम पहले
से भी ज्यादा चालाक और होसियार बन सकता है . वह दुश्रो का नाजायज फायदा उठाने से और जुर्म करने से बिल्कुल भी बाज नही आता .कहते है जेल
जुर्म का स्चूल है . सही कहते है क्युकी "ज्यातर मुजरिम तजुर्बे से ऐशी खतरनाक बातें सीखते है , जो समाज नही caahtaa की वो सीखे ." जेल
मै केदियो के पास अप्रादी बनने का वक्त- ही - वक्त होता है . इसके अलावा ,वे क़ानून को चकमा देने मै उस्ताद हो जाते है . जेल मै वह दुश्रे अपराधियों
से नए - नए हत्कंडे सीख लेता है और दुश्रो को भी कुछ हत्कंडे सिखा देता है ."एक जवान गुनाह करता है , पर जेल की हवा खाने के बाद वह जुर्म का
'गुरु' बन जाता है." केवल १००० मै से १० मुजरिम ही एषे होते है जो जेल की हवा खाने के बाद सुधर जाते है बाकी ..............................................बड़े उस्ताद बन
जाते है .कई अपराधी एषे भी होते है जिन्हें सबूत ना मिलने के कारण छोड़ दिया जाता है , इसलिए वे इश नतीजे पर पहुँच जाते है की जुर्म करना
फायदेमंद है और वे और भी hateele बन जाते है और घुसते चले जाते है बुराई के समुन्दर मै ।


जुर्म की दुनिया मै जाना मजबूरी है, या अपनी मर्जी से ?
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कुछ लोगो को लगता है की इश संसार मै जीने के लिए , उनके आगे सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वह है , जुर्म की दुनिया मै जाना . क्या यह सच है ? हम सोचते है की चंचल मन वाले , गरीबी की चक्की मै पिस रहे या फिर जिंदगी से हार चुके लोग ही जुर्म की दुनिया मै जाते है . पर sach नही है यह . अमीर , पढे - लिखे , नामी
लोग भी आज जुर्म की दुनिया मै पहुँच चुके है . इश्से यही नतीजा निकलता है की ............लोग अपनी मर्जी से जुर्म करने का चुनाव करते है .
"जुर्म........की 'जड़' एक इन्शान के हालत नही बल्कि उसकी अपनी soch होती है . " हम jeshaa सोचते है , weshaa ही करते है . हम
कोई भी काम करने से पहले सोचते है , उशे करते वक्त सोचते है और उशे पूरा करने के बाद भी सोचते रहते है . इसलिए हम कह सकते है की " मुजरिम बेबस नही होते बल्कि वे दुश्रो को बेबस बनाते है और जुर्म की दुनिया मै कदम रखने का चुनाव अपनी मर्जी से
करते है ". "जिंदगी की बेहतर बनाने के चक्कर मै बहुत से सहरी जवानों ने (अपराध को चुना अपना kariyar " .भगवान् ने इंसान को आजाद मर्जी
के साथ बनाया है , इसलिए वह मुश्किल - से - मुश्किल हालत मै भी अपना रास्ता ख़ुद चुन सकता है . इसमे कोई दो raai नही है की लाखो लोग
हर दिन तंगहाली मै जीते है और समाज मै हो रहे अन्याय का सिकार होते है . या फिर हो सकता है , वे एषे परिवार मै रहते हो जिनमे लड़ाई होना
रोज की बात है . मगर फिर भी , ये लोग कुख्यात अपराधी नही बनते . "जुर्म बुरे maahol , लापरवाह माँ - बाप ,...............या बेरोजगारी
की वजह से नही होते , बल्कि अपराधियों की वजह से होते है । इसकी सुरुवात एक इंसान के दिमाग से होती है , ना की समाज के बुरे हाल से।


" जुर्म की 'जड़'.........................(मन )
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बाइबिल बताती है की एक इंसान के पाप की वजह उसके हालत नही , बल्कि उसका मन होता है । " जब एक इंसान अपनी किसी बुरी इच्छा के बारे दिन - रात सोचता रहता है , तू वह दरअसल उशे अपने दिल मै पनपने दे रहा होता है . फिर यह इच्छा उष पर इश कदर हावी हो जाती है की मोका मिलते ही वह खतरनाक काम कर बेठता है ।

उदहारण के लिए.........................जब एक insaan कभी - कभार अश्लील तस्वीरे देखता है , कुछ समय बाद उष पर ग़लत काम करने का जूनून सवार हो सकता है . फिर एक दिन इश जूनून मै आकर वह ghinoni हरकत कर सकता है . यहाँ तक की इसके लिए वह जुर्म का रास्ता तक इक्तियार कर सकता है . आज दुनिया फिल्मो , wediyo गेमो , gande साहित्य , इंटरनेट , मोबाइल और वो जाने - माने हस्ती jinkaa charitra सही नही है के जरिये जुर्म की दुनिया मै जा रहे है .इन सब चीजो के रंग मै रंग रहे है . उन्ही का अनुसरण कर rahe है . इनसब चीजो मै जो अच्छी बातें है वो उनकी तरफ़ ध्यान नही dete पर ग़लत चीजो को तुरंत अपना लेती है और अपना रही है . आज इनसब चीजो के फायदे कम नुकशान ज्यादा नजर आ रहा है .अफ़सोस उनका यही रवैया जुर्म की आग मै घी का काम करता है . लेकिन
यह जरुरी नही की हर इंसान , दुनिया के इश रंग मै रंग जाए।


क्या हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है ?
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जो इंसान एक बार जुर्म की दुनिया मै चले जाते है, मुजरिम ban जाते है , इसका यह मतलब नही की वह जिंदगी भर मुजरिम ही बना रहेगा . जैशे एक इंसान ,
जुर्म की दुनिया मै जाने का चुनाव करता है , weishe ही वह "जुर्म की दुनिया से निकलकर एक साफ-सुथरी जिंदगी जीने का भी चुनाव कर सकता है ."अनुभव दिखाते है की लोगो की चाहे किसी भी maahol मै परवरिश क्यों ना हुई हो , वे बदल सकते है , बसरते उनमे एषा करने की इच्छा हो . "जो-जो बातें सत्य हो , जो - जो बातें अच्छी हो, जो - जो बातें सुहावनी हो , जो - जो बातें sadgun की हो ,प्रसंसा की हो , प्रभु की हो ,अच्छे इंसानों की हो ,नेक इंसानों की हो उन्ही का हमेशा ध्यान करो , उन्ही के बारे मै सोचो ,उन्ही के रास्ते पर चलो.समय का sadupyog करो ,काम मै मन लगाओ .तभी तुम्हारा मन saant रहेगा ,स्थिर रहेगा.और तुम कह sakoge की हां हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है बल्कि निकल आए है .............................

क्यों है बेटा प्यारा ?



आजकल सुनने को मिलता है की माता- पिता अपने होने वाले बच्चे का लिंग - परिक्सन करा रहे है । अगर बेटा होता है तो उशे जनम दिया जाता है और अगर बेटी हो तो उशे जनम से पहले ही मार दिया जाता है । क्या आज बेटा ही सबकुछ है , बेटी का कोई मोल नही । तो फिर घर का सारा काम बेटी से ही क्यों कराया जाता है ? जबकि उष घर पर तो ज्यादा हक़ बेटे का माना जाता है . जब माँ या पिता कोई भी बीमार होता है तो बेटी ही क्यों स्कूल छोड़कर उनकी सेवा करती है , उनकी देखभाल करती है ? जबकि माता - पिता को को बेटा ही ज्यादा प्यारा होता है . क्यों किसी ब्रत या त्यौहार पर बेटी से सारी तैयारियां करने के लिए कहा जाता है ? जबकि सभी सुब कार्य बेटे से ही करवाए जाते है . बात बस इतनी सी ही नही है माँ-बाप बेटे को बहुत प्यार करते है , इतना की कभी-कभी बेटा बहुत ही बिगड़ जाता है .
और कहने लगता है .......................

मै चाहे ये करू ,

मै चाहे वो करू ,

मेरी मर्जी.................................

पर बेटी को पराया धन समजकर ज्यादा भाव नही दिया जाता । गावो मै ये सब कुछ ज्यादा ही होता है क्युकी सायद वे पढे - लिखे नही होते पर सहर मै तो ज्यादातर सभी पढे लिखे होते है फिर भी ये सब कुछ होता है और करते भी पढे लिखे लोग ही है । क्या फायदा ऐशी पढ़ाई लिखाई का जो सही ग़लत की पहचान ना करा सके ? वे लोग जो अपने आपको पढा - लिखा समजते है , समज्दार समजते है और लिंग -परीक्षण करवाते है , बेटी को बोझ समजते है , बेटा - बेटी मै भेद-भाव करते है , मै उन्हें पढा- लिका गवार कहूँगी ।

पढे - लिखे गवार ----- (हां है वे पढे ---- लिखे गवार)-------------------------------------------------
माँ - बाप सोचते है की बेटा उनके वंश को आगे बढायेगा , उनके बुढापे का सहारा बनेगा। लेकिन ये क्यों नही सोचते की वंश को आगे बढ़ाने वाली भी तो किसी की बेटी ही है , बेटा अकेले वंश को आगे कैशे बढ़ा सकता है ? और रही बात बुढापे के सहारे की तो लड़किया शादी से पहले हमेशा अपने घर व माता - पिता , बाही - बहन का ख्याल रखती है , शादी के बाद भी हमेशा अपने मायके आकर देखती रहती है की कही उसके माता - पिता को कोई परेशानी तो नही है । जो माता - पिटा ये सोचते है की बेटा ही सबकुछ है ,वो ज़रा उन घरो मै जाकर देखे जहा बेटी नही है । अगर वो बीमार हो तो कैशे उनके घर का चुल्हा नही जलता या उन्हें पडोसियों का मोहताज बनना पड़ता है . उनका घर उतना साफ - सुथरा नही होता जितना आपका . घर को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है की इश घर मै लड़की है और इश घर मै नही . वेईशे भी क्या गारंटी है की शादी के बाद बेटा अपने माँ- बाप के साथ ही रहे . आजकल न्यूज़- पेपर मै , समाचार मै पढने - सुनने को मिलता ही रहता है की एक करोड़पति के माता - पिता मूंगफली बेच रहे है , कोई भीक मांगने को मजबूर है . कई तो एषे भी है जिनके बेटे ही ख़ुद उन्हें वृद्ध आश्रम छोड़ आए है , कुछ ने अपने माता - पिता के आसियाने को अपना बना लिया व अब उनसे अपना पल्रा भी जाढ़ लिया . कई एषे भी मिल जायेंगे जो माता -पिता को ही नौकर बनाए बैठे है . अगर बेटा ही सबकुछ होता तो ये सब क्यों होता ? क्यों आज हजारो वृद्ध आश्रम खुले है ? क्यों सरकार वृद्ध लोगो के लिए अच्छी पेंसन योजनाये बना रही है ? क्यों आज भी हजारो वृद्ध बेटा होते हुए भी अकेलेपन का जीवन व्यतीत कर रहे है ? क्यों है आज भी लाखो वृधो की आंखो मै आंसू ? मेरे इश लेख का ये मतलब बिल्कुल नही है की बेटे की कोई अहमियत नही है . बल्कि मै समाज को ये बताना चाहती हू की जितनी जरुरत हमे बेटे की है उतनी ही जरुरत बेटी की भी . तभी हमारा परिवार सम्पूर्ण व सुखी बन पाएगा और हमारा देश भी .और बेटियों को भी ये ना कहना पड़े की .................................

अब जो किए हो

दाता फिर ना वो कीजो,

अगले जनम

मोहे बिटिया ना कीजो।

कम नही किसी से ,आज की लड़किया ............................--------------------------------------------------------------------------------------