पहले आम आदमी भी अपने बच्चो को सी .बी.एस .ई स्कूल मै पढाने के सपने देख लेता था और पढ़ा भी लेता था क्युकी केंद्रीय विद्यालयों की फीस और स्कूलों के मुकाबले बहुत कम थी । पर आज उनकी फीस मै भी तेजी से बढोतरी हो रही है जिससे आम आदमी , यहाँ तक की केंद्रीय कर्मचारी भी अपने बच्चो को केंद्रीय विद्यालयों मै पढाने मै असमर्थ हो रहे है। केंद्रीय कर्मचारियों की तन्ख्वा तो आप लोग जानते ही है। पहले तो फीस किसी तरह भर भी दी जाती थी और किताबे भी सेकेंड हेंड मिल जाया करती थी सो काम चल जाता था। पर अब हर साल किताबे बदल रही है और किताबो के दाम भी दुगने हो रहे है और तो और टीचर हैं की हर तीसरे दिन नए -नए रायटरो की किताबो के नाम गिना देते है। तो कैसे पढ़ा पाएगा कोई कर्मचारी अपने बच्चो को सी.बी.एस.ई स्कूलों मै । और आप तो जाने ही हैं की प्राइवेट स्कूलों की फीस आसमान छु रही है। जहाँ तक बात है कोर्स मै हुए बदलाव की तो पहले जहाँ ये किताबे ज्ञान - वर्धक हुआ करती थी । भाषा भी साफ - सुथरी होती थी और बच्चो को भी पढने मै मजा आता था वहीं अब इन किताबो को पहले से काफ़ी सरल बना दिया गया है पर अब पैटर्न और भाषा एकदम घटिया ।
अब पहले क्लास की एक कविता ही ले लीजिये --------
छ: साल की छोकरी
भरकर लाइ टोकरी
टोकरी मै आम है
नहीं बताती दाम है
दिखा- दिखाकर टोकरी
हमे बुलाती छोकरी
इस कविता को पढिये और आप ही बताइये की क्या सीख पायेगा नन्हा सा बच्चा इस कविता से और हो सके तो सी .बी.एस.ई वालो तक भी इस बात को पहुँचा दीजिये आपकी बहुत मेहरबानी होगी।
Monday, May 26, 2008
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