Saturday, April 5, 2008
देवी नही इंसान हू मै
हमारे देश मै औरत को कई नाम दिए गए है . उशे कभी 'देवी' के रूप मै पूजा जाता है तो कभी 'अबला' के नाम से जाना जाता है . कोई कहता है नारी ही परिवार को बनाती है और कोई कहता है नारी ही परिवार के टूटने का कारण होती है . कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ . हमारे देश मै एक औरत को इतने नाम दिए गए है की आज समाज ही नही जानता की उसकी असली पहचान क्या है ? कभी लगता है वह देवी है इसलिए सब कुछ कर सकती है तो कभी लगता है की वह अबला है , शक्तिहीन है जो कुछ नही कर सकती. मुझे लगता है की यही कारण है की आज भी हमारे देश मै नारी , "एक औरत" अपनी पहचान ढूँढ रही है , जो सायद इन नामो मै कही खो गई है . हम 'पुरुषो' के बारे मै उतनी चर्चा नही करते जितनी 'औरतो' के बारी मै 'क्यों'? अगर एक पुरूष कुछ भी 'सही या ग़लत' करे , उसकी तरफ़ इतना ध्यान नही दिया जाता . पर एक औरत का पल्ला भी अगर ज़रा सा खिसक जाए तो बबाल खडा हो जाता है या यू कहू की बबाल खडा कर दिया जाता है , क्यों ? हम ये क्यों नही समजते , या समझना चाहते की जिस तरह पुरूष एक आम इंसान है उशी तरह एक औरत भी तो आम इंसान ही है . फिर क्यों हम कभी उशे 'देवी ' तो कभी ' अबला ' कहकर पुकारते है ? क्यों कहते है की सुख देने वाली और दुःख देने वाली वही है . परिवार तो सबसे मिलकर बनता है तो क्यों अकेले ही उश्पर ये बोज ढाल दिया जाता है ? यह समाज केवल औरत का ही तो नही है , बल्कि मै कहूँगी की इश समाज मै आज भी औरत कुछ नही है ,फिर क्यों ये समाज औरत को बड़े-बड़े नाम देकर उशे भ्रम मै डाले है ? और जब इशी भ्रम मै आकर वह कुछ करना चाहती है तो उशे "अबला" कहकर फिर सकती -हीन कर दिया जाता है . ये सब ज्यादातर हमारे ही देश मै होता है . क्यों होता है ? या क्यों हो रहा है पता नही ? हम आज अंग्रेज देशो से अपनी बराबरी कर रहे है या करना चाहते है , और अपना देश छोड़कर उनके देशो मै बसना चाहते है . जिस कारण बच्चे के पैदा होते ही उशे अंग्रेजी बोलना सिखाया जा रहा है . जब हम अपनी जड़ को ही अंग्रेज बनाने पर तुले हुए है तो फिर क्यों हम उन्ही की तरह औरत को "आजाद" नही कर देते । क्युकी हम केवल और केवल अपने फायदे के बारे मै ही सोचते है . कही मर्द्जात यह तो नही सोच रहा की अगर औरत को आजाद कर दिया तो जिमेदारी उनके कंधे पर भी आ जायेगी ,केवल बाहर की ही नही घर की भी और वे इश जिम्मेदारी को उठाने मै अपने को सक्सम नही समजते इसलिए डरते है औरत को आजाद करने से.मै बस यही कहना चाहती हू की औरत को देवी या अबला या कोई भी और नाम मत दो . मत भात्काओ उशे की वह अपना असली रूप अपनी असली पहचान ही भूल जाए . उशे अपनी ही तरह एक साधारण इंसान समझो . केवल इंसान . कर दो उशे अलग - अलग नामो के भंधन से आजाद . "आजाद " एकदम "आजाद". और फिर देखो वह भी तुम्हारी ही तरह एक इंसान ,"साधारण इंसान " नजर आएगी जो ना अबला होगी और ना देवी .फिर ना ही पुरूष -स्त्री के उप्पर चर्चा होगी ना फालतू की कोई बहस , न कोई पुरूष ये प्रशन उत्था सकेगा की स्त्री को अहमियत दी जाती है उन्हें नही और ना कोई स्त्री ये कह पाएगी की यह पुरूष का समाज है उश्का नही.सब खुश रहेंगे ,और हम सब चाहते भी यही है ना.ख़ुद जियो औरो को भी जीनो दो ,यही तो एक जिंदगी का रास्ता, तुम्हे अमन का शान्ति का वास्ता.......................
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