आप चाहे दुनिया की किसी भी कोने मै रहे , हर दिन आको जुर्म की देह्रो वारदातों के बारे मै सुनने को मिलता होगा , जिनसे रोंगटे खड़े हो जाते है .
आज अपराधियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है , ये अपराधी कोई और नही बल्कि हमारे ही आसपास के लोग है , हमारे ही दोस्त है , हमारे
ही रिश्तेदार है या हमारे ही पड़ोसी है . आदमी आज इतना मतलबी , लालची , बेईमान और क्रूर हो गया है की अपने मतलब के लिए वो अपने बाप को
भी मौत के घाट उतार देता है ।
आज हर आदमी के मुह से यही सुनने को मिलता है ------------------(बाप बड़ा न बहिया , सबसे बड़ा रुपैया) कोई भी बाही को बाही नही समज्ता , दोस्त को दोस्त नही समज्ता , हर कीमत पर बस अपना मतलब निकालना कहता है फिर उशे किसी की जान ही
क्यों ना लेनी पड़े .और इस तरह पहुँच जाता है वह जुर्म की दुनिया मै और खानी पड़ती है जेल की हवा .पर क्या जेल जाने के बाद , सजा काटने के
बाद वह सुधर जाता है ? क्या होता है उशे अपने किए पर पछतावा ? नही , बल्कि .............." एक बार जेल की सजा काटने के बाद मुजरिम पहले
से भी ज्यादा चालाक और होसियार बन सकता है . वह दुश्रो का नाजायज फायदा उठाने से और जुर्म करने से बिल्कुल भी बाज नही आता .कहते है जेल
जुर्म का स्चूल है . सही कहते है क्युकी "ज्यातर मुजरिम तजुर्बे से ऐशी खतरनाक बातें सीखते है , जो समाज नही caahtaa की वो सीखे ." जेल
मै केदियो के पास अप्रादी बनने का वक्त- ही - वक्त होता है . इसके अलावा ,वे क़ानून को चकमा देने मै उस्ताद हो जाते है . जेल मै वह दुश्रे अपराधियों
से नए - नए हत्कंडे सीख लेता है और दुश्रो को भी कुछ हत्कंडे सिखा देता है ."एक जवान गुनाह करता है , पर जेल की हवा खाने के बाद वह जुर्म का
'गुरु' बन जाता है." केवल १००० मै से १० मुजरिम ही एषे होते है जो जेल की हवा खाने के बाद सुधर जाते है बाकी ..............................................बड़े उस्ताद बन
जाते है .कई अपराधी एषे भी होते है जिन्हें सबूत ना मिलने के कारण छोड़ दिया जाता है , इसलिए वे इश नतीजे पर पहुँच जाते है की जुर्म करना
फायदेमंद है और वे और भी hateele बन जाते है और घुसते चले जाते है बुराई के समुन्दर मै ।
जुर्म की दुनिया मै जाना मजबूरी है, या अपनी मर्जी से ?
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कुछ लोगो को लगता है की इश संसार मै जीने के लिए , उनके आगे सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वह है , जुर्म की दुनिया मै जाना . क्या यह सच है ? हम सोचते है की चंचल मन वाले , गरीबी की चक्की मै पिस रहे या फिर जिंदगी से हार चुके लोग ही जुर्म की दुनिया मै जाते है . पर sach नही है यह . अमीर , पढे - लिखे , नामी
लोग भी आज जुर्म की दुनिया मै पहुँच चुके है . इश्से यही नतीजा निकलता है की ............लोग अपनी मर्जी से जुर्म करने का चुनाव करते है .
"जुर्म........की 'जड़' एक इन्शान के हालत नही बल्कि उसकी अपनी soch होती है . " हम jeshaa सोचते है , weshaa ही करते है . हम
कोई भी काम करने से पहले सोचते है , उशे करते वक्त सोचते है और उशे पूरा करने के बाद भी सोचते रहते है . इसलिए हम कह सकते है की " मुजरिम बेबस नही होते बल्कि वे दुश्रो को बेबस बनाते है और जुर्म की दुनिया मै कदम रखने का चुनाव अपनी मर्जी से
करते है ". "जिंदगी की बेहतर बनाने के चक्कर मै बहुत से सहरी जवानों ने (अपराध को चुना अपना kariyar " .भगवान् ने इंसान को आजाद मर्जी
के साथ बनाया है , इसलिए वह मुश्किल - से - मुश्किल हालत मै भी अपना रास्ता ख़ुद चुन सकता है . इसमे कोई दो raai नही है की लाखो लोग
हर दिन तंगहाली मै जीते है और समाज मै हो रहे अन्याय का सिकार होते है . या फिर हो सकता है , वे एषे परिवार मै रहते हो जिनमे लड़ाई होना
रोज की बात है . मगर फिर भी , ये लोग कुख्यात अपराधी नही बनते . "जुर्म बुरे maahol , लापरवाह माँ - बाप ,...............या बेरोजगारी
की वजह से नही होते , बल्कि अपराधियों की वजह से होते है । इसकी सुरुवात एक इंसान के दिमाग से होती है , ना की समाज के बुरे हाल से।
" जुर्म की 'जड़'.........................(मन )
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बाइबिल बताती है की एक इंसान के पाप की वजह उसके हालत नही , बल्कि उसका मन होता है । " जब एक इंसान अपनी किसी बुरी इच्छा के बारे दिन - रात सोचता रहता है , तू वह दरअसल उशे अपने दिल मै पनपने दे रहा होता है . फिर यह इच्छा उष पर इश कदर हावी हो जाती है की मोका मिलते ही वह खतरनाक काम कर बेठता है ।
उदहारण के लिए.........................जब एक insaan कभी - कभार अश्लील तस्वीरे देखता है , कुछ समय बाद उष पर ग़लत काम करने का जूनून सवार हो सकता है . फिर एक दिन इश जूनून मै आकर वह ghinoni हरकत कर सकता है . यहाँ तक की इसके लिए वह जुर्म का रास्ता तक इक्तियार कर सकता है . आज दुनिया फिल्मो , wediyo गेमो , gande साहित्य , इंटरनेट , मोबाइल और वो जाने - माने हस्ती jinkaa charitra सही नही है के जरिये जुर्म की दुनिया मै जा रहे है .इन सब चीजो के रंग मै रंग रहे है . उन्ही का अनुसरण कर rahe है . इनसब चीजो मै जो अच्छी बातें है वो उनकी तरफ़ ध्यान नही dete पर ग़लत चीजो को तुरंत अपना लेती है और अपना रही है . आज इनसब चीजो के फायदे कम नुकशान ज्यादा नजर आ रहा है .अफ़सोस उनका यही रवैया जुर्म की आग मै घी का काम करता है . लेकिन
यह जरुरी नही की हर इंसान , दुनिया के इश रंग मै रंग जाए।
क्या हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है ?
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जो इंसान एक बार जुर्म की दुनिया मै चले जाते है, मुजरिम ban जाते है , इसका यह मतलब नही की वह जिंदगी भर मुजरिम ही बना रहेगा . जैशे एक इंसान ,
जुर्म की दुनिया मै जाने का चुनाव करता है , weishe ही वह "जुर्म की दुनिया से निकलकर एक साफ-सुथरी जिंदगी जीने का भी चुनाव कर सकता है ."अनुभव दिखाते है की लोगो की चाहे किसी भी maahol मै परवरिश क्यों ना हुई हो , वे बदल सकते है , बसरते उनमे एषा करने की इच्छा हो . "जो-जो बातें सत्य हो , जो - जो बातें अच्छी हो, जो - जो बातें सुहावनी हो , जो - जो बातें sadgun की हो ,प्रसंसा की हो , प्रभु की हो ,अच्छे इंसानों की हो ,नेक इंसानों की हो उन्ही का हमेशा ध्यान करो , उन्ही के बारे मै सोचो ,उन्ही के रास्ते पर चलो.समय का sadupyog करो ,काम मै मन लगाओ .तभी तुम्हारा मन saant रहेगा ,स्थिर रहेगा.और तुम कह sakoge की हां हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है बल्कि निकल आए है .............................
Thursday, April 3, 2008
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2 comments:
कमला जी,आपकी अभिव्यक्ति धीरे-धीरे सुखर और प्रखर होती जा रही है। साधुवाद स्वीकारिये,आप अब भी सफल ही हैं बस थोड़ी मनमर्जी करना बचा है तो वो भी पूरा हो जाएगा।
Aap ka lekh rarahneey hai log apne swarth ke liye aaj kuchh bhi-kuchh bhi kar sakte hai.
Ajeet Kumar Singh
From:- Lucknow
ajeetdeep@gmail.com
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