ख़ुद भूखी रहकर भी
परिवार को भरपेट खिलाती है
अपने अरमानों का गला घोटकर भी
परिवार की हर जरुरत को पूरा करती है
सारे दुःख सहकर भी
परिवार को सुख देती है
ख़ुद गर्मी मै तपकर भी
परिवार को छाव देती है
ठंड सहकर भी
परिवार को अपने
प्यार की गर्माहट देती है
अपनी लाज बेचकर भी
परिवार की लाज रखती है
वही " माँ "कहलाती है
पर जाने क्यों अंत मै वह
अकेली ही रह जाती है।
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