Tuesday, June 17, 2008

कश्मीर युद्ध

जब कश्मीर युद्ध चल रहा था तब एक दिन मैं शाम के समय टी.वी पर एक कार्यक्रम देख रही थी । सब लोग कश्मीर युद्ध पर कुछ न कुछ सुना रहे थे । तभी दिमाग मे ख्याल आया की क्यों न मैं भी कुछ लिखूं क्युकी लिखने का शौक तो मुझे था ही पर पहले या तो शायरियाँ लिखती थी या किसी किताब मैं से कुछ भी अच्छा लगता था तो उत्तार लेती थी ।
ये थी मेरी पहली कविता --------------------------------------



हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की लड़ाई थी
दोनों ही तरफ़ के सैनिकों ने
अपनी - अपनी जान लड़ाई थी
अचनाक दुश्मन लाइन आफ कंट्रोल पर पहुँचा
तो अपने सैनिक ने भी उसे धर दबोचा
बोला आज तुझे मारुंगा और तेरे खून से
अपने देश की प्यास बुझाऊंगा ,
दुश्मन डर गया और बोला
थोड़ा सा अपने मन को मोड़ लो
मेरे प्यारे भाई मुझे छोड़ दो
जाने कौन सी हवा चल गई
अपने प्यारे सैनिक को दया आ गई
सैनिक बोला ठीक है छोड़ दूंगा
तेरे लिए अपना मन भी मोड़ लूँगा
पर मेरी भी एक शर्त है
मान ले यदि तू एक मर्द है
दुश्मन मन ही मन मुस्कान
सोचा ये इसकी भूल है
और बाहर बोला मुझे सब मंजूर है
इत्तिफाक से अपना सैनिक एक कवि था
उसका कवि मन जागा और
इधर - उधर भागा
उसने दुश्मन को कविता सुनाई
दुश्मन की सारी इन्द्रियाँ झ्न्नाई
दुश्मन को कुछ भी समझ नहीं आ रहा
था फिर भी सैनिक के गुण गाये जा रहा था
उम्मीद थी की कभी तो कविता ख़त्म होगी
और उसके दिल की इच्छा भी पूरी होगी
इतने मैं कवि बोला
अरे ! मेरा साहस तो बढ़ाओ
जरा जोर - जोर से तालियाँ तो बजाओ
कवि अपनी कविता सुनाता गया
दुश्मन से तालियाँ बजवाता गया
उसने दुश्मन से ताली बजवाई तबतक
ताली बजाते - बजाते दुश्मन की
जान नही चली गई जबतक
इसतरह सैनिक ने दुश्मन को मिटाया
अपने सैनिक होने का फ़र्ज़
और कवि होने का गर्व
दोनों को साथ - साथ निभाया ।

अगर आप समाज को और करीब से जानना चाहते हैं TO नीचे लिखे लिंक पर क्लिक करें


www.kamlabhandari.blogspot.com