Thursday, April 10, 2008

मै देखती हूँ सपने

मै देखती हूँ सपने
कुछ खुली आंखो से
कुछ बंद आंखो के सपने
कुछ ख़ूबसूरत तो
कुछ बद्सुरात सपने
मै देखती हूँ सपने
कुछ प्यारे ,कुछ सबसे न्यारे

कुछ सुख देने वाले
कुछ दुःख देने वाले सपने
मै देखती हूँ सपने
कुछ सफ़ेद , कुछ काले सपने

कुछ अपनों के , कुछ परायो के सपने
कुछ इश दुनिया , कुछ उष दुनिया के सपने
मै देखती हूँ सपने
जानती नही की पूरे होंगे

ये कभी हमारे होंगे
कभी हंसाते कभी रुलाते
फिर भी मै देखती हूँ सपने

पुरूष की कहानी स्त्री की जुबानी


पुरुष का मन कहता है
मै भी समाज का हिस्षा हू
औरो की तरह ,
बात करता है आज समाज
चर्चा करता है
औरतो की , लड़कियों की
बच्चो की , बुद्धों की
अमीरों की , गरीबो की
सबकी करता है
पर करता नही वो
बात कभी (पुरुष की ) मेरी
क्या मै नही समाज का हिस्षा ?
पुरुष हू तो क्या हुआ
क्या मैं इंसान नही
तुम ही तो कहते हो
मै समाज का अहम् हिस्षा हू
फिर क्यों हमेशा मुझसे नजर चुराते हो ।
चर्चा करते हो
औरत की रक्षा कौन करेगा
कौन दिलायेगा उनको हक़ ,
उनका कोटा कौन बढायेगा ,
उनकी लड़ाई कौन लड़ेगा
और महिला दिवश कैशे मनाया जायेगा ।
मैं ये नही कहता
की मुझे भी है
पुरुष दिवश की जरुरत ,
पर पुरुष हू तो क्या हुआ
मै भी तो एक इंसान हू
क्या नही है मुझे भी
रक्षा की , सहानभूति की ,
मदद की जरुरत ।
स्त्री के लिए लड़ने तो
सब आते है
पर मुझे हमेशा ही
अकेला क्यों छोड़ जाते है ?
अगर आशु मै अपने दिखाता नही
दख भी किसी को बताता नही
तो क्या नही है
मुझपर भी चर्चा की जरुरत ?
जानता हू समाज मै
स्त्रिया है काम , पुरुष है ज्यादा
और बनता भी है वो अपने को
सबसे कुछ ज्यादा
पर इंसान होने के नाते
मुझपर भी तो है
चर्चा की जरुरत
मुझे भी है आपके प्यार की जरुरत।

कभी - कभी

मुझे पछतावा होता है कभी - कभी
की मै बेटी हूँ
पर क्या बेटे को भी होता है
की वो बेटा है
मै रोती हू कभी - कभी
की मै बेटी हूँ
पर क्या बेटा भी रोता है
की वो बेटा है
मै हंसती हू कभी - कभी
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी हँसता है
की वो बेटा है
मै सुनती हू गाली कभी - कभी
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी सुनता है
की वो बेटा है
मै सुनती हू ताने हमेशा
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी .......................

ये शादी बड़ी निराली है

ये शादी बड़ी निराली है
किसी की आबादी तो
किसी की बर्बादी है
ये शादी बड़ी निराली है

सपने ये दिखाती है तो
कभी उनमे आग भी लगा जाती है
किसी को समानित तो
किसी को अपमानित कर जाती है
ये शादी बड़ी निराली है

उम्र का बन्धन नही कोई
कभी भी हो जाती है
किसी को ग्राहक तो
किसी को सामान बना जाती है
ये शादी बड़ी निराली है

किसी के जीवन को सुखी तो
किसी को जीवन भर दुखी कर जाती है
किसी को राजा तो
किसी को रंक बना जाती है
ये शादी बड़ी निराली है

किसी की आग बुझा जाती है तो
किसी को आग मै झुलसा जाती है
ये शादी बड़ी निराली है ।