Friday, March 28, 2008

आज के कॉलेजो की सच्चाई

पहुचना कॉलेज हमेशा लेट
कहना सर का ,
गेट आउट फ्रॉम क्लास
वो बाहर जाकर
सभी से कहना यहा का सिस्टम ही है ख़राब ----------------------------------------लेकिन आज अगर बच्चे कॉलेज जल्दी पहुँच भी जाते है टो मास्टर ही गायब हो जाते है। वो बातें अब पुरानी होती जा रही है की बच्चा देर से आया और मास्टर ने उशे बाहर निकाल दिया या कोई सजा दी।
बल्कि आज मास्टर ही बच्चो से कह देते है की मै आज तैयारी करके नही आया सो तुम लोग बाहर घूम सकते हो या फिर ख़ुद ही क्लास मै नही जाते। बेचारा बच्चा क्या करे ? बहुत म्हणत की फिर भी अच्छा सरकारी कॉलेज नही मिल सका । निकल पड़े प्राइवेट कॉलेज के लिए जो फेवरेट थे ।

वैसे आजकल हर गली -मुह्हाले मै कॉलेज मिल जाते है. कही-कही एक
choti सी बिल्ल्डिंग मै ही कोलेज खोल दिया जाता है. जहा भी एड्मिसन के लिए गए
कहा गया की सीट फुल हो चुकी है या लाखो का डोनेशन माँगा गया ।

कभी - कभी एषा भी होता है की सीट बची होती है और कॉलेज वाले झूट कह देते है की सीट फुल है ताकि ज्यादा डोनेशन मिल सके। बेचारे बच्चे और उनके परेंट्स जो इतनी दूर से आए होते है वापस खाली हाथ ही लौट जाते है । कितनी उमीदे कितने अरमान थे उनके . इतना खर्च करके दूर -दूर से आए ,पर सब बेकार ।
टूट गए सारे अरमान। टेंशन ही टेंशन ,बच्चे को भी (की पूरा साल बर्बाद हो जायेगा)और परेंट्स को भी (की बच्चे का
भविष्य ख़राब हो रहा है)। अगर किसी कॉलेज मै सीट्स है और हमने कहा की हमारे पास इतने पैसे नही है to वो तुरंत
बोलते है , कोई बात नही लोन दिलवा देंगे ,हमारे कॉलेज मै बहुत से लोने वाले आए है। एषा लगता है की उनका बस चलता to वो हमारा घर तक बिकवा देते . अपने कॉलेज की वो इतनी बडाई करते है और इतना विज्ञापन करते है की हमे भी लगता है
की चलो सस्ते मै अच्छा कॉलेज मिल गया। (saayad हम दिल को दिल्लाषा दे रहे होते है
). कहते है न "मरता क्या ना करता"।मजबूरी मै कॉलेज मै दाखिला ले लिया जहा डोनेशन सबसे कम यानी ३- ४ लाख के बीच tha
। करते भी क्या मजबूरी थी दाखिला to लेना ही था । क्या गारेंटी है की अगर एक साल
ड्राप कर भी दिया to अगले साल अच्छे कॉलेज मै सीट मिल ही जाए। इस साल भी खूब म्हणत की थी . रात भर नही सोये,खाने की फुरसत नही ,कोचिंग भी की
थी. कई दिन खुले आकाश क्या खिड़की से भी बाहर नही झाँका की टाइम न वेस्ट हो जाए। फिर
भी ७५ से ८५% के बीच ही नम्बर ला पाये।क्या करे comptetion का जमाना है इतने
नम्बरो मै बात नही बनती. बिना पेड कॉलेज बहुत कम है और पेड कॉलेज बहुत अधिक.पापा ने बहुत म्हणत से पैसे बचाए थे सब लगा दिए. हमने भी सोच लिया चलो कोई बात नही खूब म्हणत करेंगे और कुछ बनकर दिखायेंगे, और
पापा को उसका चार गुना लोतायेंगे. जब सब कुछ एकदम फिट हो गया तभी उष कॉलेज से कॉल आ गई जो हमारी चोइस का था.
उन्होंने कहा सिर्फ़ एक सीट खाली है . जल्दी एड्मिस्सिओं ले लो डोनेशन भी कम कर दिया गया है सिर्फ़ आपके लिए, क्युकी आप
पहले हमारे कॉलेज मै आ चुके है. उफ़ अब क्या करे सबका दिमाग ख़राब हो जाता है फिर से
टेंशन. पहले इसलिए टेंशन मै थे की अच्छे कॉलेज मै एड्मिस्सिओं नही मिला . kisi tarha एक कॉलेज मै दाखिला ले लिया, to डोनेशन की टेंशन ,वो भी किसी तरह से दे
दिया और अब, की अच्छा कॉलेज हाथ से निकल गया. टेंशन ही टेंशन .मै बिना किसी से डरे कह सकती hu की ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ कॉलेज वालो की देन है।
अगर सीट्स है to फिर क्यों कहते है झूट और एक बार मना कर दिया टू फिर क्यों दुबारा
कॉल करके परेशान करते है. क्या सच नही है यह? चलिए सब chod दीजिये , ले लिया दाखिला बात ख़त्म. पहले दिन college पहुँचते है बहुत अच्छा लगता है सब कुछ नया -नया सा । सुरु के कुछ दिनों टू थोडी बहुत padahi होती है पर वो थोडी बहुत मै ही अटक जाती है.
सेमेस्टर वेसे ६ महीने का होता है पर कॉलेज निराला है न सो ३-४ महीने मै ही सिमेस्टर
खत्म कर देते है .कोई रुल नही है. पेपर कभी भी होने लगते है, क्लास टेस्ट होते है मगर
कॉपी चेक नही होती सो बच्चे अब वो भी नही देते और कुछ बच्चे देना भी चाहते है to मास्टर ही कह देता है बच्चे कम है नम्बर एषे ही दे
दूंगा तुम chinta kyu करते हो?
सिमेस्टर का कोई पेपर अगर किसी प्रॉब्लम के कारन जरा आगे खिसक जाए to फिर उष पेपर
का bhagwaan ही मालिक है। चलिए छोडिये ,अगर किसी तरह से पेपर खत्म हो भी जाए to रिजल्ट का महीनों tak कुछ
अत्ता -पता नही . अगर गलती से रिजल्ट निकल भी जाए to marksheet का दूर-दूर तक
नामो-निशान नही.कभी-कभी टू dushra सेमेस्टर खत्म होने को होता है tab अन्तिम दिन ,पहले सेमेस्टर का
रिजल्ट निकलता है या दुश्रा सिमेस्टर khatam hone के कुछ dino बाद निकलता है . अगर
किसी बच्चे की पहले सिमेस्टर मै बेक आई है टू उशे पता ही नही चल पाटा और कई
peparo की तैयारी एक साथ करनी पड़ती है. क्या वो तैयारी कर पाएगा. उसका भी भगवन
मालिक है. अब आई chuuti की बारी ----------इतनी होती है की साल कब आया और चला गया पता
ही नही चला. पहले कॉलेज बंद होते थे to बच्चा दुखी हो जाता था की अब padhaai कैशे
होगी. maastaro की याद आती थी. आज अगर कॉलेज बंद होता है टू बच्चे आज भी दुखी
हो जाते है और उनका मन गाने लगता है.............कल कॉलेज बंद हो जाएगा तुम अपने घर
को जावोगे हम अपने घर को jaayenge फिर एक लड़का -एक लड़की से मिल नही पायेगे वो
जुदा हो जायेंगे--------------- .chuuti के बाद हम क्लास मै होते है ,पैसे जो दिए है (वो भी पापा के खून पसीने की
kamaai )और हमारी ही तरह कुछ और बच्चे जो हमारी ही तरह पैसे और परिवार की कदर
करते है . पर maaster नही होता और हम बुलाना भी चाहे टू कह देते है की क्लास मै बच्चे
बहुत कम है . कल पदायेंगे और ये आप भी जानते है की कल कभी आता नही. कुछ maaster आ भी जाते है टू उन्हें ठीक से ख़ुद आता नही पधायेंगे क्या खाक. पर वो भी
क्या करे अभी -अभी टू बी.tek ,em.ba,बी.फार्म. और न जाने कई बड़ी बड़ी digreeyaa ली
है .कोई experience नही है paadhane का, to ठीक से पढाये कैशे. उन्हें टू experience
लेना thaa इसलिए interview दे दिया. पर ये कॉलेज चलने वालो को सोचना चाहिये की कैशे maastero को लेना चाहिये और कैसे
को नही. उन्हें केवल पैसे bachaane से ज्यादा मतलब होता है इसलिए कम salary
यानी(naye maastero ) को रख लेते है ,क्यूंकि experienced matlab , ज्यादे पैसे लेगा
न. आज कॉलेज को बच्चो के भविष्य से कोई लेना देना नही है unkaa टू है बस यही सपना
"राम naam जपना पराया माल अपना"----------------------------------.
unexperienced ठीक से पड़ा नही पाते ,(कोई भी unexperience ) काम ठीक से नही
कर पाटा चाहे वो कितनी भी mehnat कर ले. sach hi समय ही उशे सिखाता है.(फिर चाहे
वो हम yaa aap ही क्यों न हो). कैशे लगेगा बच्चो का मन क्लास मै, वो bhi निकल
पड़ते है बाहर और इस तरह हो जाते है आजाद. कुछ बच्चे भी एषे होते है की वो कॉलेज मै
केवल मौज करने आते ,या उनके maata-pitaa ke पास बहुत पैसा होता है सो चले आए
टाइम-पास karne के लिए. पर sabke चक्कर मै वो भी रह जाते है पीछे जो आए थे सपने
लेकर. सारे सपने toot जाने के बाद.कॉलेज की hakikat jaanne के बाद या to वे भी निकल
पड़ते है क्लास से बाहर या फिर कुछ बिगड़े बच्चो के साथ करने लगते है गुंडा गर्दी , और इश
तरह कॉलेज बन जाता है एक अखाडा, और होने लगते है हादसे.aur uskaa man kahne lagte hai saare sapne kahi kho gaye ,hi hum kya se
kya ho gaye--------------------.
AUR ज्यादातर, kanteen me table बजा के gaane gaate hai dosto के saath....................................एक बात यहाँ जरुर कहना कहती hou की मै यह सभी maastro की बात नही कर रही
,kuch aaj bhi bade hi josh ke saath padhate hai पर कहते है न की samundar मै
एक चुटकी नमक की क्या keemat.यही तक सीमित नही है कॉलेज की हकीकत । admission की फीस पूरी भरने के बाद भी बात-बात पर ५००-१००० रुपे मांगते ही रहते है.
कभी स्पोर्ट्स के नाम पर,कभी function के नाम पर, कभी kuch सिखाने के naam par
और भी ना जाने किस-किस के नाम पर. क्लास की एक खिड़की का seesa टूट गया या लैब
मै एक टेस्ट- tube टूट jaaye . सारे स्टूडेंट्स को ५००-५०० रुपे जमा karne पड़ते है. अगर वो न करे to बार बार सबके सामने उसका नाम पुकारा जाता है उशे bejat किया जाता
है isliye बच्चा मजबूरी मै जमा कर ही देता है. पर क्या कॉलेज वाले देते है सरकार को
इसका हिस्साब?ये ही नही कॉलेज की building to बड़ी-बड़ी होती है पर एक प्लेसमेंट-सेल नही होता। एक ही कॉलेज मै न जाने कितनी ही branche होती है न जाने कितने कोर्स चलते
है.(saayad ख़ुद कॉलेज chalaane वालो को भी पता न हो). जब बच्चो के campus-
सेलेक्शन का टाइम आता है टू उनके साथ एषा खेल खेला जाता hai की उनके pero से जमीन
ही निकल जाती है. भाडे के चार लोगो को बुलाया जाता है ,वो भी ऐशी कंपनी की जिसका कभी नाम भी नही
सुना. ५०० मै से सिर्फ़ ५० बच्चो का केम्पस -सलेक्शन ही हो paata hai.
किसी ठीक ठाक कंपनी मै । १०-१५ बच्चो का किसी चोटी-मोटी कंपनी मै और बाकियों को
अंगूठा. जिस कारन कई bacche to आत्म-hattya तक कर लेते है और कुछ depression मै
चले जाते हैऔर कुछ गाते है................................(क्या से क्या हो गया BEWAFA नौकरी के
INTJAAR मै)B.tech किया है to भी data entry का कम करना पड़ता है,या किसी school कॉलेज मै
teacher की नौकरी करनी पड़ती है. MBA किया है to एजेंट की tarha इधर- उधर
भटकना पड़ता है और तनखा क्या मिलती है वही ७-८ हजार रुपये . MBA के बंदो की बात
करू to उनके सामने सरत रख दी जाती है की पॉलिसी बेची to पैसे मिलेंगे नही to कुछ नही
. इश चक्कर मै कुछ बन्दे अपनी नौकरी के चक्कर मै अपने परिवार और रिश्तेदारों को ही
बुग्गा बना लेते है. बेचारे करे भी टू क्या ,या वे भी किसी स्चूल-कॉलेज या फिर कही क्लार्क का काम करने को
मजबूर हो जाते है और मन कह उठता है........................(वक्त ने किया क्या हसी सितम हम
रहे न हम तुम रहे न तुम). क्या इसी लिए ली थी ये बड़ी-बड़ी degreeya ,इशी लिए किए थे इतने रुपये बरबाद. अगर
डाटा एंट्री ही करनी है या सलेस-मन ka kaam karna hai ya एजेंट की तरह ही भटकना है
टू क्यों इतने रुपे बर्बाद किए. कही से सस्ता सा कोई कोर्स कर लेते टू आज ये हालत न होती की लोग मजाक उडाये की
MBA वाला सेल्स मन, B.tech वाला क्लार्क और न जाने क्या क्या. वकील को ले लीजिए नाम कितना बड़ा पर अगर कचहरी मै जाए to सारी हकीकत पता चल
जाती है. उफ़ इतनी बड़ी -बड़ी digreeya और ये हाल? अफ़सोस हो रहा है जानती नही किश पर, पर हो रहा है बहुत हो रहा है .क्या आपको भी
हुआ था या हो रहा है ?या आज के कॉलेजो की हालत देखकर होता है , आप भी कह दे जो
दिल मै है(ताकि जो आपके साथ हुआ,या फिर आपके बाही-बहनो ,या फिर दोस्त या पड़ोसी के
साथ हो रहा है किसी और के साथ न हो.अगर आप भी चाहते है आवाज उठाना और अगर आप है मुज्से सहमत और आपको भी
अफ़सोस हो रहा है to चलो आवाज उठाये कुछ कर दिखाए .......नए doar मै लिखे हम
मिलकर ने कहनीईईईईईइ.........................आप अपने कॉलेज के बारे मै बताना चाहते है या फिर कॉलेज की sacchaiyo को दुनिया के
सामने लाना cahte है. इश ब्लॉग के maadhyam से, अपना लेख (पैराग्राफ) लिखे और मुझे भेजे ------ -
www.freedom.974@rediffmail.com
aapka hardik स्वागत है।


लेखिका : कमला भंडारी