सन १९७० के शुरुआती और मध्य के दशक में पहला आधुनिक ए टी एम इंग्लैण्ड मे स्थापित किया गया था। चुम्बकीय पट्टिका वाले कार्ड भी इसी वक्त पहली बार प्रयोग में आये थे। कार्ड के मानक अमेरिकी बैंकिंग एसोसियेशन द्वारा निर्धारित किये गये थे, जो कि आज भी प्रयोग में हैं। ए टी एम कार्ड को हैक करने वाले लोगो के कारण बैंको ने पिन को एनकोड करने की या कोई अन्य ऐसा माध्यम ढूंढने की कोशिशे करीं, जिससे कि हैकर्स को खाते धारक का खाता विवरण ना मिल सके। उनकी कोशिश यही थी कि ये खोज एक ऐसी प्रणाली इस्तेमाल से की जाए जिसका कि हैकर्स या छात्रों आदि के लिये आसानी से अंदाज़ा लगा पाना कठिन हो।
यद्यपि सुरक्षा का ये तरीका एक अच्छे हैकर के सामने कुछ नही था। और इसी कारण से एटीएम कम्प्यूटर साईंस की शरण में आया। इनके कारण क्रिप्टोलोजी का व्यवसायीकरण हुआ। जो कि कोड और सिफ़र का अध्ययन है। सन १९७० तक क्रिप्टोलाजी पर सैन्य एवं राजनयिकों का एकाधिकार हुआ करता था। कोड की किताबें और सिफ़रिंग की मशीने रेडियो और टेलीग्राफ़िक सिग्नलो के संरक्षण के लिये ही इस्तेमाल की जाती थी। कई सुपर पावरो ने अपने धन और संसाधनो को क्रिप्टोलाजी के विशेषज्ञों को जुटाने में लगा दी थी, उनका एकमात्र ध्येय अपने संदेशों की मज़बूत कोडिंग और विरोधियों के संदेशों की डीकोडिंग करना था। इस बढती हुई क्रिप्टोलाजिस्ट्स की मांग से ऐसी ऐसी तकनीकों का विकास हुआ जो कि अभी तक सेनाओं तथा राजनयिकों द्वारा एक भेद के रूप में छुपा कर रखी गईं थीं। उस समय बैंकों और उनके पूर्तिकर्ताओं (सप्लायर्स) को अचानक एहसास हुआ कि उन्हे क्रिप्टोलाजी तथा क्रिप्टोलाजी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत विशेषज्ञों की आवश्यकता है।ये एक नितांत अलग किस्म की क्रिप्टोलाजी थी, चूंकि जहां सेनाओं का ध्यान अपने संदेशों को एक राज़ बनाये रखना होता था वहीं दूसरी ओर बैंको का ध्येय था अपने ग्राहकों की सूचना का सत्यापन करना। हालांकि इस वक्त कम्प्यूटर सिक्योरिटि अपनी शैशवावस्था में थी, और अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी एफ़ बी आई के दिशा निर्देशों पर आधारित थी। इस आधार पर तीन तरह के आईडेन्टिफ़िकेशन आंकडे परिभाषित किये गये, ये ऐसे आंकडे थे जो कि यूसर जानता हो। मसलन एक पासवर्ड, ध्वनि पहचान, यूसर के हस्ताक्षर अथवा चेहरे की पहचान। जो यूसर वर्गीकृत सिस्टम को एक्सेस करना चाहते थे, उन्हे इनमें से दो तरह की सुरक्षा जांच से गुज़रना होता था। ये सभी सुरक्षा के तरीके उतने असरदार नही थे जितने कि बैंकों को चाहिये थे। इसी लिये बैंको की सुरक्षा से जुडे लोगो ने उपरोक्त में से दो तरीके अपनाने शुरु करे।
ए टी एम डिज़ाईनर्स ने विभिन्न यूसर्स की पहचान के लिये पहले तरीके को अपनाया।
अब समस्या ये आई कि पिन को सुरक्षित कैसे बनाया जाये। इन सब से निपटने के लिये भांति भांति की तकनीको का विकास हुआ, जिनमे से आई बी एम और वीसा VISA सिस्टम सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। आई बी एम के सिस्टम को १९७९ में लांच किया गया जबकि वीसा उसके कुछ बाद मार्केट में आया। इन दोनो तकनीको में पिन को खाते धारक के खाते से सीक्रेट तौर पर जोडा गया था।किसी मानक
ए टी एम सिस्टम मे पिन की कैलकुलेशन कुछ इस प्रकार से होती है।
किसी भी खाते के आखिरी पांच डिजिट ले लीजिये, और उन्हे वैलिडेशन डेटा के ११ अंको से पहले जोड दीजिये। सामन्यत: ये खाते के नम्बर के पहले ११ अंक होते हैं। ये ११ अंक कार्ड की इश्यू डेट का एक फ़न्क्शन भी हो सकते हैं, किसी भी सूरत में अंत में आपके पास आने वाले १६ अंको की वैल्यू ही एन्क्रिप्शन कलन विधि (Encryption Algorithm) होती है। जो कि आई बी एम और वीसा के लिये DES होती है। (US Data Encryption Standard algorithm) और इसका एन्क्रिप्शन १६ अंको की एक की के द्वारा किया जाता है जिसे हम लोग पिन के रूप में जानते हैं। पहले चार अंको को दशमलवीकृत (Decimalised) कर दिया जाता है, और आखिरी चार अंक ही साधारण पिन होते हैं। कई बैंको के द्वारा सिर्फ़ साधारण पिन ही इश्यू किये जाते है। यद्यपि कई बैंको ने आज हमे ये सुविधा प्रदान कर दी है कि हम अपनी पसंद के पिन को चुन सकें।ये चार अंको की संख्या आफ़सेट कहलाती है, जो कि साधारण पिन में जोड दी जाती है जिससे कि ग्राहक अपने ए टी एम से व्यवहार कर सके।
Saturday, May 17, 2008
कबतक खेलोगे खूनी होली
आजकल हर अखबार, हर टी.वी चेनल मै बस आतंकवाद , कत्ल और बलात्कार की घटनाएं ही देखने सुनने को मिलती है और मिल रही है। अभी कुछ ही दिनों पहले सी। आर ।पी ।ऍफ़ रामपुर मैं भी आतंकवादियों ने कई सैनिको की जाने ली थी और अब जयपुर मै कई हजार लोगो को मौत के घाट उत्तारकर खूनी होली क्हेली। और भी न जाने कितने ही अपराध किए होंगे । आख़िर कबतक आतंकवादी इसी तरह खूनी होली खेलकर खुशिया मानते रहेंगे और कबतक हमलोग इसी तरह मजबूर और बेबस होकर ये तमाशा देखते रहेंगे ? शायद तबतक जबतक हमारे देश के क़ानून को कड़ा न किया जाए । क्युकी इसी लचीले क़ानून की वजह से ही अभी तक कई खोंकार आतंकवादी खुले घूम रहे है और इस तरह के घिनोने कारनामो को अंजाम दे रहे है। अब तो आतंकवादियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है क्युकी सभी जानते है की लचीले कानून के कारण हिन्दुस्तान मै सजा जल्दी नही हो पाती । केस लंबा और लंबा होता ही चला जाता है और तब तक मुजरिम बचने के सारे रास्ते तलाश कर लेता है और मामूली सजा काटने के बाद छुट जाता है और साथ ही उसके अन्दर का डर भी खत्म हो जाता है जिस कारण वो और भी हेवानियत पर उतर आता है। हर साल आतंकवादी लाखो निर्दोष लोगो की जाने लेते है । पकड़े भी जाते है पर क्या हो पाई है किसी को कड़ी सजा ? क्या लाखो लोगो की जाने लेने वाले किसी भी एक आतंकवादी को मिली है मौत की सजा ? क्या कटी है किसी खुन्कार आतंकवादी की सारी जिंदगी जेल मैं ? जबकि जेल मै जाया जाए तो कई निर्दोष लोग या मामूली जुर्म किए हुए लोग सालो से जेलों मै सजा काट रहे है । जाने किस बात की । यही है हमारे देश का कानून । इसी लिए तो कह रही हूँ इसे लचीला कानून। जब तक कानून को कड़ा नही किया जायेगा , जब तक सख्ती नही की जायेगी तब तक ये घटनाये यू ही होती रहेंगी शायद बढ़ती रहेंगी। बहुत दुःख के साथ कहने को मजबूर हूँ की भगवान् जयपुर मै मरने वाले लोगो की आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को इस पीड़ा को सहने की शक्ति दे। पर सच्ची श्रधांजलि तो तभी दे पायेंगे जब इस घिनोने कृत्य को करने वालो को कड़ी से कड़ी सजा हो।
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