भोला बचपन , प्यारा बचपन
कितना सुंदर था वो बचपन
सुबह देर से उठाना , जल्दी सोना
बिन चिंता सपनो मै खोना
कभी रोना तो कभी हँसना
सबसे अपनी बातें मनवा लेना
कितना न्यारा था वो बचपन
प्यारी सी किताबे रंग बिरंगी
सुंदर कविताएं चाँद तारो की
थोड़ा सा काम ,पूरे दिन आराम
खेल खेलना दोस्तो संग
सूरज की शादी चाँद के संग
गुड्डे - गुडियों से खेला करते थे
बचपन मै झूला करते थे
न चिंता किसी की न फिक्र कोई
पंख बिना ही उड़ जाते थे
सारी खुशियाँ झोली मै भर लेते थे
कभी भागते तितलियों के पीछे
तो कभी नीले आकाश को छुवा करते थे
मम्मी - पापा के प्यारे थे हम
सबके राज दुलारे थे ।
आज का बचपन---------------------
भोला बचपन,प्यारा बचपन
पर जाने क्यों आज
नीरस हो गया बचपन
सुबह जल्दी उठना , रात देर से सोना
चिंता मै सपनो का खोना
हंसने का भी टाइम नही अब
रोने को भी टाइम नही है
हर दम चिंता सताती
पढ़ाई की ही रट लगी रहती
निकलना है सबसे आगे
मम्मी हरदम यही समझाती
खो गई चाँद - तारो की कहानी
हो गई अब ये बहुत पुरानी
अब कोई नही भागता तितलियों के पीछे
न देखता है नीला आकाश कोई
और न अब पंछियों सी ही आजादी है
खेल - खिलोने छुट गए सब
संगी- साथी भी रूठ गए अब
हरदम नंबर आने की होड़ लगी है
सबको पीछे कैसे छोड़ना है
यही जोड़ - तोड़ लगी है
अपना वजन है कम , किताबो का ज्यादा है
इस कोम्पटीसन के जमाने ने तो
बच्चो से बचपन ही छीन लिया है .
Wednesday, May 28, 2008
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