मैं अनपढ़ हूँ
सब कहते है की
मै अनपढ़ हूँ
मै भी कहती हूँ की
मै अनपढ़ हूँ
क्युकी पढा नही है मेने
कभी किसी स्कूल मै
देखा नही किताबो का ,
मुह भी कभी
मेरे लिए काला अक्षर
आज भी है भेंस बराबर
तभी तो सब कहते है
मै अनपढ़ हूँ
जब भी सोचती हूँ
पढ़ - लिखा इंसान कैशा होता है
तब सब कहते है
वह बडे - बडे स्कूल मै पढता है
चतुर , चालाक व बुद्धिमान होता है
क्या उन्हें पढ़ - लिखा कहते है
जो बडे - बडे स्कूल मै पढे
फिर भी हमे पढा न सके
हमारी तो छोड़ दो
जो अपनों के भी हो न सके
क्या उन्ही को कहते है पढ़ - लिखा
किताबे जिन्होंने चाटी खूब
और गरीबो का खून भी
वो चाट गए
हजम कर गए देश की दौलत
कागजो मै सारा काम कर गए .
मैं जानती हूँ की
मै अनपढ़ हूँ
क्युकी मै स्कूल नही गई
जाती भी कैसे
गरीब हूँ
पैसे नही थे उतने
अफ़सोस है मुझे भी, दुख है की
मै स्कूल नही गई
पर सोचती हूँ आज
क्या हर स्कूल जाने वाला
जिंदगी का पाठ भी सीख पाता है
शायद नही ,
क्युकी जो पाठ सीखा है मैंने
भूख से , गरीबी से ,
अपने उप्पर हुए अत्त्याचारो से
यही तो है जिंदगी का पाठ
जो मेने सीखा है हालातों से
शायद वो कभी सीख ना पाए
वैसे मै आजकल
दस्तखत करना सीख रही हूँ
फिर भी सब कहते है
मै अनपढ़ हूँ ।
written by :kamlabhandari
my blog : kamlabhandari.blogspot.com
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