Tuesday, April 22, 2008

बड़ी शातिर है ये दुनिया

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना धुंड लेती है ।

स्त्री एक रूप अनेक



















बबली तेरो मोबाइल , वह रे तेरो स्टाइल

बबली तेरो मोबाइल , वह रे तेरो स्टाइल ....................................................................
चाहे बबली हो या बब्लू , उनके पास कुछ हो या ना हो पर मोबाइल जरुर होगा . लड़किया चाहे पर्श मै मेकप का सामान लाना भूल भी जाए पर मोबाइल कभी नही भूलती .लड़के चाहे पर्श जो उनको सबसे प्रिय है वो तक भूल जाए पर मोबाइल न बाबा ना ---नेवर .बच्चे , बुड्ढे और जवान मागे बस (मोबाइल).मम्मी का पापा का हम सबका प्यारा मोबाइल.और यही नही जिनके पास होता है वो और अच्छा चाहते है ---------ये दिल मांगे मोरे .बाप रे आज की दुनिया कितनी बातूनी हो गई है . ,दुश्रो को देने के लिए भले ही एक रुपैया ना हो पर मोबाइल के लिए हजारो रुपिये पानी की तरह बहा देते है और कोई गम भी नही . आज जिधर देखो लोग बातें बस बातें करते नजर आते है . कोई सड़क के किनारे खडा है , कोई सड़क के बीच भी मोबाइल को कानो से चिपकाए है.
अपनी जान की उतनी परवाह नही है जितनी मोबाइल की . सात से सत्तर के पास भी मोबाइल आम बात है , मोबाइल की दौड़ मै गरीब अमीर का कोई भेद नही , भेद है तो बस सस्ते मंहगे का. एक छोटे से बच्चे को भी खेलने को मोबाइल ही चाहिये और अस्शी साल के बुड्ढे को भी चाहे दांत हो या ना हो, मोबाइल हमेशा रहेगा.
जय हो मोबाइल जी की ।

जान से प्यारा मोबाइलसबसे न्यारा मोबाइल हुमारा प्यारा मोबाइल वैशे मोबाइल जी है बड़े काम की चीज.कुछ भी काम हो चुटकी मै हो जाता है मोबाइल से . और तो
और त्यौहार भी अब मोबाइल पर ही मना लिया जाता है .पहले तो कुछ ही गिने -चुने त्यौहार होते थे पर मोबाइल जी के आते ही इनकी संख्या लाखो मै पहुँच गई है.
आज ये डे ,कल वो डे ,परसों न जाने कौन सा डे ? लोग इतना खुश दोस्त से मिलने पर भी नही होते जितना उश्से मोबाइल पर बातें करने और मेसेज करने पर होते
है ।
वाह रे मोबाइल तेरी महिमा अपरम्पार है।

राजा को रानी से प्यार है मोबाइल पर
सूरज चाँद का यार है मोबाइल परखाना- पीना , सोना- जागना, उठना- बैठना सब भूल गए बस याद रहा तो मोबाइल.अब लड़के को ही देख लो ,घर वालो के काम के लिए चाहे एक मिनट का टाइम ना हो पर अगर प्रेमिका ने मोबाइल घुमाया वो भी मिस कॉल ,मजनू तुरंत हाजिर. और लड़की वो भी कम नही . माँ ने कहा घर का काम करो तुरंत कह दिया पढ़ रही हूँ . ,मजनू का मिस कॉल आते ही (जो उनका कोड नम्बर है) माँ से कह दिया की सहेली के घर पढने जा रही हूँ .चल दी अपने मजनू से मिलने.यही तक सीमित नही है मोबाइल जी की दास्ताँ. अगर कुछ देर के लिए सिग्नल चले जाए तो दुनिया
उलट-पलट हो जाती है ,पागल हो जाते है ,इतने परेशान हो जाते है जैशे सब -कुछ उजड़ गया हो. और अगर कही कुछ दिक्कत आ जाए तो लगे खनख्नाने कॉल-सेंटर.वैसे चाहे कुछ भी कहो ,पर है बहुत ही सुविधाजनक यह मशीन .एकदम अल्लादीन के जादुई चिराग की तरह .किसी से कुछ कहना हो तुरंत कह दिया ,किसी से कुछ पूछना हो ,बताना हो तुरंत कह-पुच लिया. लैला या मजनू को कुछ भेजना हो किसी पास पड़ोसी से कह दिया वो भी तुरंत हो गया .सबकुछ फ़टाफ़ट. भई बहुत ही फायदेमंद है यह पर नुकशान भी कुछ कम नही.....................

१)बिना जाने-पहचाने बतियाने लगे ,खा ली जीने मरने की कसम और फिर खा गए धोका ,लुट गया सब कुछ।
२)बात-बातो मै खोल दिए घर के सारे राज और हो गया घर साफ।
३)हम तो बतियाते-बतियाते छोड़ आए वो गलिया पर वो ना आया।
४)क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार मै।
५)मोबाइल आते ही जाने कौन कौन कंपनिया लगी फ़ोन खंख्नाने ।
६)रात की नींद टूटी दिन का चैन गया।
७)अपने पास होते हुए भी दूर हो गए।
८)त्योहारों का रंग उड़ गया।
९)पैसे पानी की तरह बह गए और हाथ फिर भी खाली।
१०)दिल-दिमाग की बिमारी हुई सो अलग।
११)आनंद धुन्दने चले थे बेचैनी ,मायुशी, ले आए।
१२)दोस्त -दोस्त ना रहा ,प्यार -प्यार ना रहा।
अगर किसी को फायदा हुआ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ कम्पनी वालो को.सो डीअर बातो मै न जाओ ,अपनी अक्कल लगाओ.

Monday, April 21, 2008

भगवान् बसते है कहाँ ?

जब निकलती हूँ गलियों मै
देखती हूँ की
हजारो की संख्यावो मै
मन्दिर बसते हैं
पेडो की तलियो मै
बड़ा अच्छा लगता है की
भगवान् है हर जगह
श्रद्धा से सिर
खुद ही झुक जाता है
उन पेडो की तलियो मै
चार ईट लगा दिए और
बन गया मंदिर
जगह - जगह गलियों मै
पर आज दुख होता है
बहुत देखकर यह की
कूड़े के ढेर पड़े है
नालिया बह रही है
उन मंदिरों की गलियों मै
नमन सब करते है
फूल और कुछ
चढावा भी चढाते है
पर कोई नही तैयार
सफ़ाई के लिए
झाडू मारे गलियों मै
लोग भी क्या खूब है
की दान देते है हजारो
बडे मंदिरो मै
श्रद्धा दिखाते है पर
अपने घर के आगे वाली
गली के मंदिर मे
झांकते भी नही
और
सरकार भी तो खूब है
बडे मंदिरो की देखभाल के लिए
जुटी रहती है हमेशा
पर गलियों के मंदिरो की
कीमत कोई नही
अरे ! क्या भगवान् केवल
बडे मंदिरो मै दर्शन देते है
और छोटे मंदिरो का क्या
क्या उन्हें यू ही छोड़ देते है
नही ना !
भगवान् तो बसते है हर जगह
तो फिर क्यों ये
दिखावा और भेद भाव है
और जब तुम
दिखावा और भेदभाव करोगे
तो सच्चे भगवान् को
कैसे पावोगे ।

Sunday, April 20, 2008

PAIN

The pain is not on the day of missing of ur dear , is the pain is really when u live each day without them and with their presence in your mind.

kitne dikhawati ho gaye hum

kitne dikhawati ho gaye hum . naw din durga ki pooja karte hai ,mandir - mandir dhumte hai ,bidhi - vidhan karte hai , wo sab kuch karte hai jisse hume santosh milta hai aur jishse hume sub kuch mil jaane ki sambhawana dikhti hai . caahe iske liye kitne bhi rupe kyu na kharch ho jaaye .
har wah kaam karte hai , har wah dikhawa karte hai jisse hume lagta hai ki mata khush ho jaayegi. naw din brat rakhne ke baad ,pooja karne ke baad mata ke roopo ko (yaani betiyo ko ,ladkiyo ko)ghar par bulate hai , unke charan dhote hai ,unhe bhojan karate hai aur dakshina bhi dete hai .aur hume lagta hai ki mata humse khush ho jaayegi.

par kya insabse hogi mata khush ? kyuki unke rupo ko to hum janam lene se pahle hi maar dalte hai.
jin ladkiyo ko hum poojte hai unki hi garv hattya kar dete hai.bechariyo ko to janam bhi nasib nahi hone dete .maar dalte hai pet me hi . jab hume betiyo se pyar hi nahi hai , jab hume unki jarurat hi nahi hai to kyu poojte hai ushe ? kyu karte hai dikhawa ?

aur hum ye kyu nahi sochte ki hume bhi to kisi ki beti ne , kisi ma ne janm diya hai . humara astitva kewal purush se hi to nahi hai na . aur agar ishi tarha ladkiyo ki bhron hatya hoti rahi to kya is duniya ka astitva rah payega?

YA PHIR ,

aur cheejo ki tarha bacche peda karne ke liye bhi " MACHINE " banwayenge ?

MAI

NA MAI HINDU HUN

NA HI MUSALMAAN

NA MAI SIKKH HUN

NA HI ISAAI

MAI TO HUN

KEWAL

EK SAADHARAN INSAAN

Saturday, April 19, 2008

अनपढ़ की व्यथा


मैं अनपढ़ हूँ

सब कहते है की

मै अनपढ़ हूँ

मै भी कहती हूँ की

मै अनपढ़ हूँ

क्युकी पढा नही है मेने

कभी किसी स्कूल मै

देखा नही किताबो का ,

मुह भी कभी

मेरे लिए काला अक्षर

आज भी है भेंस बराबर

तभी तो सब कहते है

मै अनपढ़ हूँ

जब भी सोचती हूँ

पढ़ - लिखा इंसान कैशा होता है

तब सब कहते है

वह बडे - बडे स्कूल मै पढता है

चतुर , चालाक व बुद्धिमान होता है

क्या उन्हें पढ़ - लिखा कहते है

जो बडे - बडे स्कूल मै पढे

फिर भी हमे पढा न सके

हमारी तो छोड़ दो

जो अपनों के भी हो न सके

क्या उन्ही को कहते है पढ़ - लिखा

किताबे जिन्होंने चाटी खूब

और गरीबो का खून भी

वो चाट गए

हजम कर गए देश की दौलत

कागजो मै सारा काम कर गए .

मैं जानती हूँ की

मै अनपढ़ हूँ

क्युकी मै स्कूल नही गई

जाती भी कैसे

गरीब हूँ

पैसे नही थे उतने

अफ़सोस है मुझे भी, दुख है की

मै स्कूल नही गई

पर सोचती हूँ आज

क्या हर स्कूल जाने वाला

जिंदगी का पाठ भी सीख पाता है

शायद नही ,

क्युकी जो पाठ सीखा है मैंने

भूख से , गरीबी से ,

अपने उप्पर हुए अत्त्याचारो से

यही तो है जिंदगी का पाठ

जो मेने सीखा है हालातों से

शायद वो कभी सीख ना पाए

वैसे मै आजकल

दस्तखत करना सीख रही हूँ

फिर भी सब कहते है

मै अनपढ़ हूँ ।

written by :kamlabhandari

my blog : kamlabhandari.blogspot.com

Wednesday, April 16, 2008

बलात्कार


तन का बलात्कार हुआ

मन का बलात्कार हुआ

एषा लगता है मानो

जिस्म के हर अंग का

बलात्कार हुआ


तन को बिन मर्जी के छुआ

तन का बलात्कार

मन को बिन मर्जी के छुआ

मन का बलात्कार

एषा लगता है मानो

हर अंग का बलात्कार हुआ

जरुरी नही की बलात्कार हमेशा

chu कर हो

बिना छुए भी कई बार

आंखो से बलात्कार हुआ
बाहर ही नही घर मै भी

औरत की साँसों का

उसकी khusiyo का

का जीवन भर बलात्कार हुआ

Tuesday, April 15, 2008

कोन धरम है प्यारा जो बन सके हमारा .

कोन धरम है प्यारा
जो बन सके हमारा .
कोन धरम है प्यारा
जिसे कह सकू मै
ये है मेरा
सब कहते है
मै हिन्दू हूँ
पर मै कैसे कहू
की मै हिन्दू हूँ
क्युकी कर नही पाती
मै पूजा
उनकी तरह
चाहती हूँ
पर नियम नही रख
पाती हूँ
छू लेती हूँ भगवान् को
जब मन चाहता है
उन दिनों मै भी
जिन दिनो एक लड़की को
भगवान् के पास
जाने से भी
किया जाता है मना
क्या करू मै
ना भी छूना चाहू फिर भी छूना पड़ता है मन्दिर को
जब कोई कहता है
मन्दिर से माचिस लाने को
क्या कहू , कैशे कहू
की आज हूँ मै
उनसे अलग
सच कहू तो
कहना नही चाहती
इश अपमान को सहना नही चाहती
क्यों सहू मै गलती क्या है मेरी
ये नही है मर्जी मै हमारी
तो कैशे कहू की मै हिन्दू हूँ
तो कोन हूँ मै
क्या मै मुस्लिम हूँ
नही मै वो भी नही
क्युकी वो भी तो है
नियम के पक्के
और मै
बहुत ही कच्ची
और वहाँ तो
रहती है औरत
परदे मै पर मै तो
उड़ना चाहती हूँ
मन की मर्जी
करना चाहती हूँ
नही है मुझे
परदा प्यारा
वो बाँध देगा
जीवन सारा
तो कोन हूँ मै
क्या मै सिक्ख हूँ
क्यूंकि उन्ही की तरह
मुझे है प्यारी
मेरी खुद्दारी
पर शायद मै
वो भी नही
क्यूंकि सच्चे पंजाबी भी
नियम के पक्के होते है
और नियम
जिनसे मै कतराती हूँ
तो कोन हूँ मै
क्या मै इसाई हूँ
नही मै वो भी नही
क्युकी वो है
पवित्र बाइबल को मानते
और बाइबल
ध्यान देती है
सफ़ाई पर बहुत
वेसे सफ़ाई
मुझे भी है प्यारी
करती भी हूँ
रोज
घर की , कपड़ो की
पर चाहकर भी
कर नही पाती
मन मै भरी
गंदगी की सफाई
और बाइबल
इसी सफ़ाई को है
मानती
समझ नही आता
आख़िर कोन हूँ मै
केसे करू भेद
की कोन धरम है
प्यारा
जो हो सके मेरा
सबके चेहरे
दिखते है एक से
वही दो कान , दो आँखे
एक नाक , एक मुह
और खून का रंग भी
वही गहरा लाल
और करते भी है सब
उसी अद्रश्य
इश्वर , अल्लाह , वाहेगुरु , जीज़स
की पूजा
सब है एक से
फर्क है तो
चमरी का
पर रंग - बिरंगे
चमरी वाले
तो हर धरम मै है
कैशे करू भेद
की कोन धरम है
प्यारा
जो बन सके मेरा ।

Thursday, April 10, 2008

मै देखती हूँ सपने

मै देखती हूँ सपने
कुछ खुली आंखो से
कुछ बंद आंखो के सपने
कुछ ख़ूबसूरत तो
कुछ बद्सुरात सपने
मै देखती हूँ सपने
कुछ प्यारे ,कुछ सबसे न्यारे

कुछ सुख देने वाले
कुछ दुःख देने वाले सपने
मै देखती हूँ सपने
कुछ सफ़ेद , कुछ काले सपने

कुछ अपनों के , कुछ परायो के सपने
कुछ इश दुनिया , कुछ उष दुनिया के सपने
मै देखती हूँ सपने
जानती नही की पूरे होंगे

ये कभी हमारे होंगे
कभी हंसाते कभी रुलाते
फिर भी मै देखती हूँ सपने

पुरूष की कहानी स्त्री की जुबानी


पुरुष का मन कहता है
मै भी समाज का हिस्षा हू
औरो की तरह ,
बात करता है आज समाज
चर्चा करता है
औरतो की , लड़कियों की
बच्चो की , बुद्धों की
अमीरों की , गरीबो की
सबकी करता है
पर करता नही वो
बात कभी (पुरुष की ) मेरी
क्या मै नही समाज का हिस्षा ?
पुरुष हू तो क्या हुआ
क्या मैं इंसान नही
तुम ही तो कहते हो
मै समाज का अहम् हिस्षा हू
फिर क्यों हमेशा मुझसे नजर चुराते हो ।
चर्चा करते हो
औरत की रक्षा कौन करेगा
कौन दिलायेगा उनको हक़ ,
उनका कोटा कौन बढायेगा ,
उनकी लड़ाई कौन लड़ेगा
और महिला दिवश कैशे मनाया जायेगा ।
मैं ये नही कहता
की मुझे भी है
पुरुष दिवश की जरुरत ,
पर पुरुष हू तो क्या हुआ
मै भी तो एक इंसान हू
क्या नही है मुझे भी
रक्षा की , सहानभूति की ,
मदद की जरुरत ।
स्त्री के लिए लड़ने तो
सब आते है
पर मुझे हमेशा ही
अकेला क्यों छोड़ जाते है ?
अगर आशु मै अपने दिखाता नही
दख भी किसी को बताता नही
तो क्या नही है
मुझपर भी चर्चा की जरुरत ?
जानता हू समाज मै
स्त्रिया है काम , पुरुष है ज्यादा
और बनता भी है वो अपने को
सबसे कुछ ज्यादा
पर इंसान होने के नाते
मुझपर भी तो है
चर्चा की जरुरत
मुझे भी है आपके प्यार की जरुरत।

कभी - कभी

मुझे पछतावा होता है कभी - कभी
की मै बेटी हूँ
पर क्या बेटे को भी होता है
की वो बेटा है
मै रोती हू कभी - कभी
की मै बेटी हूँ
पर क्या बेटा भी रोता है
की वो बेटा है
मै हंसती हू कभी - कभी
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी हँसता है
की वो बेटा है
मै सुनती हू गाली कभी - कभी
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी सुनता है
की वो बेटा है
मै सुनती हू ताने हमेशा
की मै बेटी हू
पर क्या बेटा भी .......................

ये शादी बड़ी निराली है

ये शादी बड़ी निराली है
किसी की आबादी तो
किसी की बर्बादी है
ये शादी बड़ी निराली है

सपने ये दिखाती है तो
कभी उनमे आग भी लगा जाती है
किसी को समानित तो
किसी को अपमानित कर जाती है
ये शादी बड़ी निराली है

उम्र का बन्धन नही कोई
कभी भी हो जाती है
किसी को ग्राहक तो
किसी को सामान बना जाती है
ये शादी बड़ी निराली है

किसी के जीवन को सुखी तो
किसी को जीवन भर दुखी कर जाती है
किसी को राजा तो
किसी को रंक बना जाती है
ये शादी बड़ी निराली है

किसी की आग बुझा जाती है तो
किसी को आग मै झुलसा जाती है
ये शादी बड़ी निराली है ।

Saturday, April 5, 2008

‪देवी नही इंसान हू मै


हमारे देश मै औरत को कई नाम दिए गए है . उशे कभी 'देवी' के रूप मै पूजा जाता है तो कभी 'अबला' के नाम से जाना जाता है . कोई कहता है नारी ही परिवार को बनाती है और कोई कहता है नारी ही परिवार के टूटने का कारण होती है . कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ . हमारे देश मै एक औरत को इतने नाम दिए गए है की आज समाज ही नही जानता की उसकी असली पहचान क्या है ? कभी लगता है वह देवी है इसलिए सब कुछ कर सकती है तो कभी लगता है की वह अबला है , शक्तिहीन है जो कुछ नही कर सकती. मुझे लगता है की यही कारण है की आज भी हमारे देश मै नारी , "एक औरत" अपनी पहचान ढूँढ रही है , जो सायद इन नामो मै कही खो गई है . हम 'पुरुषो' के बारे मै उतनी चर्चा नही करते जितनी 'औरतो' के बारी मै 'क्यों'? अगर एक पुरूष कुछ भी 'सही या ग़लत' करे , उसकी तरफ़ इतना ध्यान नही दिया जाता . पर एक औरत का पल्ला भी अगर ज़रा सा खिसक जाए तो बबाल खडा हो जाता है या यू कहू की बबाल खडा कर दिया जाता है , क्यों ? हम ये क्यों नही समजते , या समझना चाहते की जिस तरह पुरूष एक आम इंसान है उशी तरह एक औरत भी तो आम इंसान ही है . फिर क्यों हम कभी उशे 'देवी ' तो कभी ' अबला ' कहकर पुकारते है ? क्यों कहते है की सुख देने वाली और दुःख देने वाली वही है . परिवार तो सबसे मिलकर बनता है तो क्यों अकेले ही उश्पर ये बोज ढाल दिया जाता है ? यह समाज केवल औरत का ही तो नही है , बल्कि मै कहूँगी की इश समाज मै आज भी औरत कुछ नही है ,फिर क्यों ये समाज औरत को बड़े-बड़े नाम देकर उशे भ्रम मै डाले है ? और जब इशी भ्रम मै आकर वह कुछ करना चाहती है तो उशे "अबला" कहकर फिर सकती -हीन कर दिया जाता है . ये सब ज्यादातर हमारे ही देश मै होता है . क्यों होता है ? या क्यों हो रहा है पता नही ? हम आज अंग्रेज देशो से अपनी बराबरी कर रहे है या करना चाहते है , और अपना देश छोड़कर उनके देशो मै बसना चाहते है . जिस कारण बच्चे के पैदा होते ही उशे अंग्रेजी बोलना सिखाया जा रहा है . जब हम अपनी जड़ को ही अंग्रेज बनाने पर तुले हुए है तो फिर क्यों हम उन्ही की तरह औरत को "आजाद" नही कर देते । क्युकी हम केवल और केवल अपने फायदे के बारे मै ही सोचते है . कही मर्द्जात यह तो नही सोच रहा की अगर औरत को आजाद कर दिया तो जिमेदारी उनके कंधे पर भी आ जायेगी ,केवल बाहर की ही नही घर की भी और वे इश जिम्मेदारी को उठाने मै अपने को सक्सम नही समजते इसलिए डरते है औरत को आजाद करने से.मै बस यही कहना चाहती हू की औरत को देवी या अबला या कोई भी और नाम मत दो . मत भात्काओ उशे की वह अपना असली रूप अपनी असली पहचान ही भूल जाए . उशे अपनी ही तरह एक साधारण इंसान समझो . केवल इंसान . कर दो उशे अलग - अलग नामो के भंधन से आजाद . "आजाद " एकदम "आजाद". और फिर देखो वह भी तुम्हारी ही तरह एक इंसान ,"साधारण इंसान " नजर आएगी जो ना अबला होगी और ना देवी .फिर ना ही पुरूष -स्त्री के उप्पर चर्चा होगी ना फालतू की कोई बहस , न कोई पुरूष ये प्रशन उत्था सकेगा की स्त्री को अहमियत दी जाती है उन्हें नही और ना कोई स्त्री ये कह पाएगी की यह पुरूष का समाज है उश्का नही.सब खुश रहेंगे ,और हम सब चाहते भी यही है ना.ख़ुद जियो औरो को भी जीनो दो ,यही तो एक जिंदगी का रास्ता, तुम्हे अमन का शान्ति का वास्ता.......................

दिल मे मेरे भड़ास है

दिल मे मेरे भड़ास है
कुछ कहने की , कुछ कहलवाने की
कुछ करने की , कुछ करवाने
की कुछ जानने की , कुछ पहचानने
की दिल मे मेरे भड़ास है
man ke अन्दर छिपी बातो परमंद-मंद मुस्काने की
और कुछ बातो पर आंसू बहाने की
ख़ुद को समझने की और समझाने की
दिल मे मेरे भड़ास है
किसी पर नकाब डालने की
किसी का उतारने की
किसी को रुलाने की कभी चुप कराने की
दिल मे मेरे भड़ास है
अपना गुस्षा दिखलाने की किसी का देखने की
अपनी हंशी दिखाने की किसी की देखने की
दिल मे मेरे भड़ास है
किसी को चिढाने की कभी ख़ुद भी चिढ जाने की
किसी को सुधारने की कभी ख़ुद भी सुधर जाने की
दिल मे मेरे भड़ास है
अनसुलझी बातो को सुलझाने की
अनकही बातो को कहलवाने की
मन की गंदगी को भगाने की
हा है मेरे दिल मे भड़ास
और आपके ?

Thursday, April 3, 2008

जुर्म की दुनिया ,जुर्म का school

आप चाहे दुनिया की किसी भी कोने मै रहे , हर दिन आको जुर्म की देह्रो वारदातों के बारे मै सुनने को मिलता होगा , जिनसे रोंगटे खड़े हो जाते है .
आज अपराधियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है , ये अपराधी कोई और नही बल्कि हमारे ही आसपास के लोग है , हमारे ही दोस्त है , हमारे
ही रिश्तेदार है या हमारे ही पड़ोसी है . आदमी आज इतना मतलबी , लालची , बेईमान और क्रूर हो गया है की अपने मतलब के लिए वो अपने बाप को
भी मौत के घाट उतार देता है ।

आज हर आदमी के मुह से यही सुनने को मिलता है ------------------(बाप बड़ा न बहिया , सबसे बड़ा रुपैया) कोई भी बाही को बाही नही समज्ता , दोस्त को दोस्त नही समज्ता , हर कीमत पर बस अपना मतलब निकालना कहता है फिर उशे किसी की जान ही
क्यों ना लेनी पड़े .और इस तरह पहुँच जाता है वह जुर्म की दुनिया मै और खानी पड़ती है जेल की हवा .पर क्या जेल जाने के बाद , सजा काटने के
बाद वह सुधर जाता है ? क्या होता है उशे अपने किए पर पछतावा ? नही , बल्कि .............." एक बार जेल की सजा काटने के बाद मुजरिम पहले
से भी ज्यादा चालाक और होसियार बन सकता है . वह दुश्रो का नाजायज फायदा उठाने से और जुर्म करने से बिल्कुल भी बाज नही आता .कहते है जेल
जुर्म का स्चूल है . सही कहते है क्युकी "ज्यातर मुजरिम तजुर्बे से ऐशी खतरनाक बातें सीखते है , जो समाज नही caahtaa की वो सीखे ." जेल
मै केदियो के पास अप्रादी बनने का वक्त- ही - वक्त होता है . इसके अलावा ,वे क़ानून को चकमा देने मै उस्ताद हो जाते है . जेल मै वह दुश्रे अपराधियों
से नए - नए हत्कंडे सीख लेता है और दुश्रो को भी कुछ हत्कंडे सिखा देता है ."एक जवान गुनाह करता है , पर जेल की हवा खाने के बाद वह जुर्म का
'गुरु' बन जाता है." केवल १००० मै से १० मुजरिम ही एषे होते है जो जेल की हवा खाने के बाद सुधर जाते है बाकी ..............................................बड़े उस्ताद बन
जाते है .कई अपराधी एषे भी होते है जिन्हें सबूत ना मिलने के कारण छोड़ दिया जाता है , इसलिए वे इश नतीजे पर पहुँच जाते है की जुर्म करना
फायदेमंद है और वे और भी hateele बन जाते है और घुसते चले जाते है बुराई के समुन्दर मै ।


जुर्म की दुनिया मै जाना मजबूरी है, या अपनी मर्जी से ?
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कुछ लोगो को लगता है की इश संसार मै जीने के लिए , उनके आगे सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वह है , जुर्म की दुनिया मै जाना . क्या यह सच है ? हम सोचते है की चंचल मन वाले , गरीबी की चक्की मै पिस रहे या फिर जिंदगी से हार चुके लोग ही जुर्म की दुनिया मै जाते है . पर sach नही है यह . अमीर , पढे - लिखे , नामी
लोग भी आज जुर्म की दुनिया मै पहुँच चुके है . इश्से यही नतीजा निकलता है की ............लोग अपनी मर्जी से जुर्म करने का चुनाव करते है .
"जुर्म........की 'जड़' एक इन्शान के हालत नही बल्कि उसकी अपनी soch होती है . " हम jeshaa सोचते है , weshaa ही करते है . हम
कोई भी काम करने से पहले सोचते है , उशे करते वक्त सोचते है और उशे पूरा करने के बाद भी सोचते रहते है . इसलिए हम कह सकते है की " मुजरिम बेबस नही होते बल्कि वे दुश्रो को बेबस बनाते है और जुर्म की दुनिया मै कदम रखने का चुनाव अपनी मर्जी से
करते है ". "जिंदगी की बेहतर बनाने के चक्कर मै बहुत से सहरी जवानों ने (अपराध को चुना अपना kariyar " .भगवान् ने इंसान को आजाद मर्जी
के साथ बनाया है , इसलिए वह मुश्किल - से - मुश्किल हालत मै भी अपना रास्ता ख़ुद चुन सकता है . इसमे कोई दो raai नही है की लाखो लोग
हर दिन तंगहाली मै जीते है और समाज मै हो रहे अन्याय का सिकार होते है . या फिर हो सकता है , वे एषे परिवार मै रहते हो जिनमे लड़ाई होना
रोज की बात है . मगर फिर भी , ये लोग कुख्यात अपराधी नही बनते . "जुर्म बुरे maahol , लापरवाह माँ - बाप ,...............या बेरोजगारी
की वजह से नही होते , बल्कि अपराधियों की वजह से होते है । इसकी सुरुवात एक इंसान के दिमाग से होती है , ना की समाज के बुरे हाल से।


" जुर्म की 'जड़'.........................(मन )
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बाइबिल बताती है की एक इंसान के पाप की वजह उसके हालत नही , बल्कि उसका मन होता है । " जब एक इंसान अपनी किसी बुरी इच्छा के बारे दिन - रात सोचता रहता है , तू वह दरअसल उशे अपने दिल मै पनपने दे रहा होता है . फिर यह इच्छा उष पर इश कदर हावी हो जाती है की मोका मिलते ही वह खतरनाक काम कर बेठता है ।

उदहारण के लिए.........................जब एक insaan कभी - कभार अश्लील तस्वीरे देखता है , कुछ समय बाद उष पर ग़लत काम करने का जूनून सवार हो सकता है . फिर एक दिन इश जूनून मै आकर वह ghinoni हरकत कर सकता है . यहाँ तक की इसके लिए वह जुर्म का रास्ता तक इक्तियार कर सकता है . आज दुनिया फिल्मो , wediyo गेमो , gande साहित्य , इंटरनेट , मोबाइल और वो जाने - माने हस्ती jinkaa charitra सही नही है के जरिये जुर्म की दुनिया मै जा रहे है .इन सब चीजो के रंग मै रंग रहे है . उन्ही का अनुसरण कर rahe है . इनसब चीजो मै जो अच्छी बातें है वो उनकी तरफ़ ध्यान नही dete पर ग़लत चीजो को तुरंत अपना लेती है और अपना रही है . आज इनसब चीजो के फायदे कम नुकशान ज्यादा नजर आ रहा है .अफ़सोस उनका यही रवैया जुर्म की आग मै घी का काम करता है . लेकिन
यह जरुरी नही की हर इंसान , दुनिया के इश रंग मै रंग जाए।


क्या हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है ?
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जो इंसान एक बार जुर्म की दुनिया मै चले जाते है, मुजरिम ban जाते है , इसका यह मतलब नही की वह जिंदगी भर मुजरिम ही बना रहेगा . जैशे एक इंसान ,
जुर्म की दुनिया मै जाने का चुनाव करता है , weishe ही वह "जुर्म की दुनिया से निकलकर एक साफ-सुथरी जिंदगी जीने का भी चुनाव कर सकता है ."अनुभव दिखाते है की लोगो की चाहे किसी भी maahol मै परवरिश क्यों ना हुई हो , वे बदल सकते है , बसरते उनमे एषा करने की इच्छा हो . "जो-जो बातें सत्य हो , जो - जो बातें अच्छी हो, जो - जो बातें सुहावनी हो , जो - जो बातें sadgun की हो ,प्रसंसा की हो , प्रभु की हो ,अच्छे इंसानों की हो ,नेक इंसानों की हो उन्ही का हमेशा ध्यान करो , उन्ही के बारे मै सोचो ,उन्ही के रास्ते पर चलो.समय का sadupyog करो ,काम मै मन लगाओ .तभी तुम्हारा मन saant रहेगा ,स्थिर रहेगा.और तुम कह sakoge की हां हम जुर्म की दुनिया से बाहर निकल सकते है बल्कि निकल आए है .............................

क्यों है बेटा प्यारा ?



आजकल सुनने को मिलता है की माता- पिता अपने होने वाले बच्चे का लिंग - परिक्सन करा रहे है । अगर बेटा होता है तो उशे जनम दिया जाता है और अगर बेटी हो तो उशे जनम से पहले ही मार दिया जाता है । क्या आज बेटा ही सबकुछ है , बेटी का कोई मोल नही । तो फिर घर का सारा काम बेटी से ही क्यों कराया जाता है ? जबकि उष घर पर तो ज्यादा हक़ बेटे का माना जाता है . जब माँ या पिता कोई भी बीमार होता है तो बेटी ही क्यों स्कूल छोड़कर उनकी सेवा करती है , उनकी देखभाल करती है ? जबकि माता - पिता को को बेटा ही ज्यादा प्यारा होता है . क्यों किसी ब्रत या त्यौहार पर बेटी से सारी तैयारियां करने के लिए कहा जाता है ? जबकि सभी सुब कार्य बेटे से ही करवाए जाते है . बात बस इतनी सी ही नही है माँ-बाप बेटे को बहुत प्यार करते है , इतना की कभी-कभी बेटा बहुत ही बिगड़ जाता है .
और कहने लगता है .......................

मै चाहे ये करू ,

मै चाहे वो करू ,

मेरी मर्जी.................................

पर बेटी को पराया धन समजकर ज्यादा भाव नही दिया जाता । गावो मै ये सब कुछ ज्यादा ही होता है क्युकी सायद वे पढे - लिखे नही होते पर सहर मै तो ज्यादातर सभी पढे लिखे होते है फिर भी ये सब कुछ होता है और करते भी पढे लिखे लोग ही है । क्या फायदा ऐशी पढ़ाई लिखाई का जो सही ग़लत की पहचान ना करा सके ? वे लोग जो अपने आपको पढा - लिखा समजते है , समज्दार समजते है और लिंग -परीक्षण करवाते है , बेटी को बोझ समजते है , बेटा - बेटी मै भेद-भाव करते है , मै उन्हें पढा- लिका गवार कहूँगी ।

पढे - लिखे गवार ----- (हां है वे पढे ---- लिखे गवार)-------------------------------------------------
माँ - बाप सोचते है की बेटा उनके वंश को आगे बढायेगा , उनके बुढापे का सहारा बनेगा। लेकिन ये क्यों नही सोचते की वंश को आगे बढ़ाने वाली भी तो किसी की बेटी ही है , बेटा अकेले वंश को आगे कैशे बढ़ा सकता है ? और रही बात बुढापे के सहारे की तो लड़किया शादी से पहले हमेशा अपने घर व माता - पिता , बाही - बहन का ख्याल रखती है , शादी के बाद भी हमेशा अपने मायके आकर देखती रहती है की कही उसके माता - पिता को कोई परेशानी तो नही है । जो माता - पिटा ये सोचते है की बेटा ही सबकुछ है ,वो ज़रा उन घरो मै जाकर देखे जहा बेटी नही है । अगर वो बीमार हो तो कैशे उनके घर का चुल्हा नही जलता या उन्हें पडोसियों का मोहताज बनना पड़ता है . उनका घर उतना साफ - सुथरा नही होता जितना आपका . घर को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है की इश घर मै लड़की है और इश घर मै नही . वेईशे भी क्या गारंटी है की शादी के बाद बेटा अपने माँ- बाप के साथ ही रहे . आजकल न्यूज़- पेपर मै , समाचार मै पढने - सुनने को मिलता ही रहता है की एक करोड़पति के माता - पिता मूंगफली बेच रहे है , कोई भीक मांगने को मजबूर है . कई तो एषे भी है जिनके बेटे ही ख़ुद उन्हें वृद्ध आश्रम छोड़ आए है , कुछ ने अपने माता - पिता के आसियाने को अपना बना लिया व अब उनसे अपना पल्रा भी जाढ़ लिया . कई एषे भी मिल जायेंगे जो माता -पिता को ही नौकर बनाए बैठे है . अगर बेटा ही सबकुछ होता तो ये सब क्यों होता ? क्यों आज हजारो वृद्ध आश्रम खुले है ? क्यों सरकार वृद्ध लोगो के लिए अच्छी पेंसन योजनाये बना रही है ? क्यों आज भी हजारो वृद्ध बेटा होते हुए भी अकेलेपन का जीवन व्यतीत कर रहे है ? क्यों है आज भी लाखो वृधो की आंखो मै आंसू ? मेरे इश लेख का ये मतलब बिल्कुल नही है की बेटे की कोई अहमियत नही है . बल्कि मै समाज को ये बताना चाहती हू की जितनी जरुरत हमे बेटे की है उतनी ही जरुरत बेटी की भी . तभी हमारा परिवार सम्पूर्ण व सुखी बन पाएगा और हमारा देश भी .और बेटियों को भी ये ना कहना पड़े की .................................

अब जो किए हो

दाता फिर ना वो कीजो,

अगले जनम

मोहे बिटिया ना कीजो।

कम नही किसी से ,आज की लड़किया ............................--------------------------------------------------------------------------------------