Thursday, April 3, 2008

क्यों है बेटा प्यारा ?



आजकल सुनने को मिलता है की माता- पिता अपने होने वाले बच्चे का लिंग - परिक्सन करा रहे है । अगर बेटा होता है तो उशे जनम दिया जाता है और अगर बेटी हो तो उशे जनम से पहले ही मार दिया जाता है । क्या आज बेटा ही सबकुछ है , बेटी का कोई मोल नही । तो फिर घर का सारा काम बेटी से ही क्यों कराया जाता है ? जबकि उष घर पर तो ज्यादा हक़ बेटे का माना जाता है . जब माँ या पिता कोई भी बीमार होता है तो बेटी ही क्यों स्कूल छोड़कर उनकी सेवा करती है , उनकी देखभाल करती है ? जबकि माता - पिता को को बेटा ही ज्यादा प्यारा होता है . क्यों किसी ब्रत या त्यौहार पर बेटी से सारी तैयारियां करने के लिए कहा जाता है ? जबकि सभी सुब कार्य बेटे से ही करवाए जाते है . बात बस इतनी सी ही नही है माँ-बाप बेटे को बहुत प्यार करते है , इतना की कभी-कभी बेटा बहुत ही बिगड़ जाता है .
और कहने लगता है .......................

मै चाहे ये करू ,

मै चाहे वो करू ,

मेरी मर्जी.................................

पर बेटी को पराया धन समजकर ज्यादा भाव नही दिया जाता । गावो मै ये सब कुछ ज्यादा ही होता है क्युकी सायद वे पढे - लिखे नही होते पर सहर मै तो ज्यादातर सभी पढे लिखे होते है फिर भी ये सब कुछ होता है और करते भी पढे लिखे लोग ही है । क्या फायदा ऐशी पढ़ाई लिखाई का जो सही ग़लत की पहचान ना करा सके ? वे लोग जो अपने आपको पढा - लिखा समजते है , समज्दार समजते है और लिंग -परीक्षण करवाते है , बेटी को बोझ समजते है , बेटा - बेटी मै भेद-भाव करते है , मै उन्हें पढा- लिका गवार कहूँगी ।

पढे - लिखे गवार ----- (हां है वे पढे ---- लिखे गवार)-------------------------------------------------
माँ - बाप सोचते है की बेटा उनके वंश को आगे बढायेगा , उनके बुढापे का सहारा बनेगा। लेकिन ये क्यों नही सोचते की वंश को आगे बढ़ाने वाली भी तो किसी की बेटी ही है , बेटा अकेले वंश को आगे कैशे बढ़ा सकता है ? और रही बात बुढापे के सहारे की तो लड़किया शादी से पहले हमेशा अपने घर व माता - पिता , बाही - बहन का ख्याल रखती है , शादी के बाद भी हमेशा अपने मायके आकर देखती रहती है की कही उसके माता - पिता को कोई परेशानी तो नही है । जो माता - पिटा ये सोचते है की बेटा ही सबकुछ है ,वो ज़रा उन घरो मै जाकर देखे जहा बेटी नही है । अगर वो बीमार हो तो कैशे उनके घर का चुल्हा नही जलता या उन्हें पडोसियों का मोहताज बनना पड़ता है . उनका घर उतना साफ - सुथरा नही होता जितना आपका . घर को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है की इश घर मै लड़की है और इश घर मै नही . वेईशे भी क्या गारंटी है की शादी के बाद बेटा अपने माँ- बाप के साथ ही रहे . आजकल न्यूज़- पेपर मै , समाचार मै पढने - सुनने को मिलता ही रहता है की एक करोड़पति के माता - पिता मूंगफली बेच रहे है , कोई भीक मांगने को मजबूर है . कई तो एषे भी है जिनके बेटे ही ख़ुद उन्हें वृद्ध आश्रम छोड़ आए है , कुछ ने अपने माता - पिता के आसियाने को अपना बना लिया व अब उनसे अपना पल्रा भी जाढ़ लिया . कई एषे भी मिल जायेंगे जो माता -पिता को ही नौकर बनाए बैठे है . अगर बेटा ही सबकुछ होता तो ये सब क्यों होता ? क्यों आज हजारो वृद्ध आश्रम खुले है ? क्यों सरकार वृद्ध लोगो के लिए अच्छी पेंसन योजनाये बना रही है ? क्यों आज भी हजारो वृद्ध बेटा होते हुए भी अकेलेपन का जीवन व्यतीत कर रहे है ? क्यों है आज भी लाखो वृधो की आंखो मै आंसू ? मेरे इश लेख का ये मतलब बिल्कुल नही है की बेटे की कोई अहमियत नही है . बल्कि मै समाज को ये बताना चाहती हू की जितनी जरुरत हमे बेटे की है उतनी ही जरुरत बेटी की भी . तभी हमारा परिवार सम्पूर्ण व सुखी बन पाएगा और हमारा देश भी .और बेटियों को भी ये ना कहना पड़े की .................................

अब जो किए हो

दाता फिर ना वो कीजो,

अगले जनम

मोहे बिटिया ना कीजो।

कम नही किसी से ,आज की लड़किया ............................--------------------------------------------------------------------------------------

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