Saturday, March 22, 2008

हम हैं काँटे

हम हैं काँटे ना कीजिए नफरत

हम भी फूलों के साथ पलते हैं

लुत्फ़ इसका भी पूछिए उनसे

लड़खड़ाकर के जो संभलते हैं

वक्त आने पे आखरी देखा

लोग हसरत से हाथ मलते हैं

सो गये जिन्न खो गई परियाँ

बच्चे ना इनसे अब बहलते हैं

सच की पुख़्ता ज़मीन पे चलिए

देखिए फिर कहाँ फिसलते हैं

ग़म नहीं गर कहे बुरा दुनिया

अच्छे इंसा से लोग जलते हैं

जिस्म के साथ दिल नहीं थकता

कितने अरमां अभी मचलते है

ज़िंदगी भर क्या दौड़ोगे

आओ
कुछ देर को टहलते हैं...................