Wednesday, May 28, 2008

कितना सुंदर था वो बचपन ,कैसा है ये आज का बचपन

भोला बचपन , प्यारा बचपन
कितना सुंदर था वो बचपन
सुबह देर से उठाना , जल्दी सोना
बिन चिंता सपनो मै खोना
कभी रोना तो कभी हँसना
सबसे अपनी बातें मनवा लेना
कितना न्यारा था वो बचपन
प्यारी सी किताबे रंग बिरंगी
सुंदर कविताएं चाँद तारो की
थोड़ा सा काम ,पूरे दिन आराम
खेल खेलना दोस्तो संग
सूरज की शादी चाँद के संग
गुड्डे - गुडियों से खेला करते थे
बचपन मै झूला करते थे
न चिंता किसी की न फिक्र कोई
पंख बिना ही उड़ जाते थे
सारी खुशियाँ झोली मै भर लेते थे
कभी भागते तितलियों के पीछे
तो कभी नीले आकाश को छुवा करते थे
मम्मी - पापा के प्यारे थे हम
सबके राज दुलारे थे ।


आज का बचपन---------------------

भोला बचपन,प्यारा बचपन
पर जाने क्यों आज
नीरस हो गया बचपन
सुबह जल्दी उठना , रात देर से सोना
चिंता मै सपनो का खोना
हंसने का भी टाइम नही अब
रोने को भी टाइम नही है
हर दम चिंता सताती
पढ़ाई की ही रट लगी रहती
निकलना है सबसे आगे
मम्मी हरदम यही समझाती
खो गई चाँद - तारो की कहानी
हो गई अब ये बहुत पुरानी
अब कोई नही भागता तितलियों के पीछे
न देखता है नीला आकाश कोई
और न अब पंछियों सी ही आजादी है
खेल - खिलोने छुट गए सब
संगी- साथी भी रूठ गए अब
हरदम नंबर आने की होड़ लगी है
सबको पीछे कैसे छोड़ना है
यही जोड़ - तोड़ लगी है
अपना वजन है कम , किताबो का ज्यादा है
इस कोम्पटीसन के जमाने ने तो
बच्चो से बचपन ही छीन लिया है .

Tuesday, May 27, 2008

चाहे तो टीचरों और बच्चो पर एक सर्वे करा कर देख लो

सी.बी.एस.ई को अपने कोर्स मै इस्तेमाल होने वाली किताबो पर ध्यान देना ही होगा। देखना ही होगा की उनसे मान्यता प्राप्त स्कूलों मै कौन - कौन की किताबे इस्तेमाल हो रही है। क्या सिर्फ़ स्कूलों को मान्यता देकर पेसे कमाना ही उनका मकसद हो गया है। उन्हें सोचना ही होगा की किस मकसद के लिए उन्होंने इतनी बड़ी संस्था खोली है ............१)अच्छा नागरिक बनाने के लिए ।
२) दुनिया के साथ कदम के कदम मिलाकर चलाने के लिए ।
३)ज्ञान प्रदान करने के लिए । या फिर ----------------
१)एक सब्जेक्ट के लिए कई-कई रायटरो की किताबो से पैसे कमाने के लिए ।
२)कोर्स को लंबा कर ये दिखाने के लिए की सी.बी.एस.ई स्कूलों मै कितनी पढ़ाई होती है ।
३)या अपनी फीस मै लगातार वृद्धि कर ये दिखाने के लिए की हम भी दुश्रे स्कूलों से कम नही।
अब केंद्रीय विद्यालयों को ही ले लीजिये --------और तो और टीचरों पर भी इतना बोझ डाल दिया है की पूछिये मत ।(मैं ख़ुद ही इसकी गवाह हूँ)। टीचरों को पढाने को कम समय मिलता है और फालतू के कामो पर ज्यादा समय बरबाद होता है । जैसे ही क्लास मै पहुंचे पहले डायरी भरो की कौन सा पीरियड है , कितने बच्चे आए है ,क्या पढ़ना है । कुछ समय इसमे बरबाद हुआ , कुछ समय बच्चो को चुप कराने मै तो पढाने को कितना समय मिला होगा आप ख़ुद ही अंदाजा लगा सकते है । ऊपर से पढ़ना भी उनके हिसाब से ही है जैसे --------आज केवल सुलेख ही कराना है , आज केवल कविता ही पढानी है ,या फिर पाठ के प्रशन - उत्तर ही कराने है । टीचर जब तक स्कूल मै रहते है टेंशन मै ही नजर आते है । कभी डायरी भरते हुए की क्या -क्या पढाया जा रहा है , किस -किस बच्चे ने ग्रह-कार्य नही किया , किसकी ड्रेस गन्दी थी आदि । जब किसी टीचर पर इतना बोझ डाल दिया जायेगा , इतना प्रेसर होगा तो क्या वो ठीक से पढ़ा पायेगा बच्चो को। ख़ुद टीचर ही कहते है की पहले हम बच्चो को पूरा समय देते थे अच्छे से पढाते भी थे पर अब इतना बोझ हो गया की ठीक से पढाने का समय ही नही मिलता। वो ख़ुद कुबूल कर रहे हैं की अब पहले के मुकाबले । सी.बी.एस. ई(केंद्रीय विद्यालयों) मै वो बात नही रही । मै ये नही कह रही की सभी केन्द्रियाविद्यालायो की यही कहानी है पर ९०% की यही कहानी है। (चाहे तो टीचरों और बच्चो पर एक सर्वे करा कर देख लो)।
www.cbse.nic.in
आप भी बच्चो के भविष्य को सुधारना चाहते है उनके लिए कुछ करना चाहते है तो कृपया अपना योगदान जरुर दे ।

Monday, May 26, 2008

पैटर्न और भाषा एकदम घटिया (सी .बी.एस.ई )

पहले आम आदमी भी अपने बच्चो को सी .बी.एस .ई स्कूल मै पढाने के सपने देख लेता था और पढ़ा भी लेता था क्युकी केंद्रीय विद्यालयों की फीस और स्कूलों के मुकाबले बहुत कम थी । पर आज उनकी फीस मै भी तेजी से बढोतरी हो रही है जिससे आम आदमी , यहाँ तक की केंद्रीय कर्मचारी भी अपने बच्चो को केंद्रीय विद्यालयों मै पढाने मै असमर्थ हो रहे है। केंद्रीय कर्मचारियों की तन्ख्वा तो आप लोग जानते ही है। पहले तो फीस किसी तरह भर भी दी जाती थी और किताबे भी सेकेंड हेंड मिल जाया करती थी सो काम चल जाता था। पर अब हर साल किताबे बदल रही है और किताबो के दाम भी दुगने हो रहे है और तो और टीचर हैं की हर तीसरे दिन नए -नए रायटरो की किताबो के नाम गिना देते है। तो कैसे पढ़ा पाएगा कोई कर्मचारी अपने बच्चो को सी.बी.एस.ई स्कूलों मै । और आप तो जाने ही हैं की प्राइवेट स्कूलों की फीस आसमान छु रही है। जहाँ तक बात है कोर्स मै हुए बदलाव की तो पहले जहाँ ये किताबे ज्ञान - वर्धक हुआ करती थी । भाषा भी साफ - सुथरी होती थी और बच्चो को भी पढने मै मजा आता था वहीं अब इन किताबो को पहले से काफ़ी सरल बना दिया गया है पर अब पैटर्न और भाषा एकदम घटिया ।
अब पहले क्लास की एक कविता ही ले लीजिये --------
छ: साल की छोकरी

भरकर लाइ टोकरी
टोकरी मै आम है
नहीं बताती दाम है
दिखा- दिखाकर टोकरी
हमे बुलाती छोकरी
इस कविता को पढिये और आप ही बताइये की क्या सीख पायेगा नन्हा सा बच्चा इस कविता से और हो सके तो सी .बी.एस.ई वालो तक भी इस बात को पहुँचा दीजिये आपकी बहुत मेहरबानी होगी।

Saturday, May 24, 2008

क्या कहते हैं आंकडे ?


एक आंकडे के मुताबिक भारत मै प्रत्येक २६ मिनट मै एक महिला छेड़छाड़ की शिकार होती है , प्रत्येक ३४ मिनट मै उसके साथ बलात्कार होता है , हर ४३ मिनट मै कोई उसका अपहरण कर लेता है और प्रत्येक ९३ मिनट बाद देश के किसी न किसी हिस्से मै उसकी हत्या कर दी जाती है।

बिजनौर के कल्याण सिहं ने पुष्पा देवी के नाक, कान काट दिए

कुछ दिनो पहले टी.वी पर एक खबर देखी । बिजनौर के कल्याण सिहं ने पुष्पा देवी के नाक, कान काट दिए व दांत तोड़ दिए । जानते है क्यों ? क्युकी कल्याण सिहं ने पुष्पा देवी की जमीन हड़प ली थी और कानूनी लड़ाई लड़कर पुष्पा देवी ने अपनी जमीन वापस पा ली । इसी बात से बौखलाये कल्याण ने उसके नाक , कान काट लिए और दांत भी तोड़ दिए । यहाँ सवाल ये उठता है की कल्याण सिहं ने पुष्पा देवी के साथ ही इतनी निर्दयता क्यों दिखाई ? उसके परिवार के अन्य सदस्यों के साथ क्यों कुछ नही किया या कर सका ? शायद इसलिए की वह स्त्री है । जिसे समाज अबला , कमजोर समझता है और पुष्पा देवी तो वैसे भी गावं की है जो शायद उसका ज्यादा कुछ न बिगाड़ सके । कितनी अजीब बात है की चाहे परिवार के लोग हो या बाहर के , सब पहले औरत पर ही अत्त्याचार करते है । आखिर क्यों ? और क्या मिल पायेगा पुष्पा देवी को न्याय ?

Wednesday, May 21, 2008

क्या हर आदमी यू ही आतंकवादी बनता जायेगा ?


आतंकवाद ,

है बहुत बडा विवाद

घिन करते है इससे सब

फिर जाने क्यों, कब

आतंकवादी बन जाते है

खून , कत्ल , तमंचा , हतियार

लूट-पाट और बलात्कार

करते है इससे जुड़ने से इनकार

फिर एक दिन अचानक

जाने क्यों इनके हो जाते है

जो रोते थे कभी

खून देखकर,

आज दूसरो के साथ

खूनी होली खेल मुस्कुराते है

थे ये भी कभी इंसान

जो आज आतंकवादी कहलाते है

कई शौक मै तो कई मजबूरी मै

इसे अपनाते है

किसी ने छीना इनका घर

इनकी दौलत, इनका गुरूर , इनका परिवार

उसी की खातिर अब

ये औरो का घर उजाड़ते है

वैसे कौन ऐसा होगा जो

सब चुपचाप सहता जायेगा

अपने सामने बहन की इज्जत लुटते देख

क्या भाई का खून नही khaul जायेगा

और उसी का बदला लेने की खातिर

वह भी आतंकवादी बन जायेगा

फिर किसी बहन की इज्जत लूट

वह अपनी कसम निभाएगा

और फिर बहन की इज्जत लुटते देख

कोई भाई आंतकवादी बन जायेगा

इसी तरह यह क्रम यू चलता ही जायेगा

बदले की आग मै निर्दोष भी

मौत के घाट उतरता जायेगा ।

पर क्या , इस तरह निर्दोष की जाने लेकर

सही मायने मै कोई

अपना बदला ले पायेगा
और क्या हमपर हरदम

इसी तरह ,

आतंकवाद का साया लहरायेगा

अपना- अपना बदला लेने की खातिर या ,

जल्दी पैसे कमाने की खातिर,

क्या हर आदमी यू ही

आतंकवादी बनता जायेगा ?

Saturday, May 17, 2008

knowledge of ATM

सन १९७० के शुरुआती और मध्य के दशक में पहला आधुनिक ए टी एम इंग्लैण्ड मे स्थापित किया गया था। चुम्बकीय पट्टिका वाले कार्ड भी इसी वक्त पहली बार प्रयोग में आये थे। कार्ड के मानक अमेरिकी बैंकिंग एसोसियेशन द्वारा निर्धारित किये गये थे, जो कि आज भी प्रयोग में हैं। ए टी एम कार्ड को हैक करने वाले लोगो के कारण बैंको ने पिन को एनकोड करने की या कोई अन्य ऐसा माध्यम ढूंढने की कोशिशे करीं, जिससे कि हैकर्स को खाते धारक का खाता विवरण ना मिल सके। उनकी कोशिश यही थी कि ये खोज एक ऐसी प्रणाली इस्तेमाल से की जाए जिसका कि हैकर्स या छात्रों आदि के लिये आसानी से अंदाज़ा लगा पाना कठिन हो।
यद्यपि सुरक्षा का ये तरीका एक अच्छे हैकर के सामने कुछ नही था। और इसी कारण से एटीएम कम्प्यूटर साईंस की शरण में आया। इनके कारण क्रिप्टोलोजी का व्यवसायीकरण हुआ। जो कि कोड और सिफ़र का अध्ययन है। सन १९७० तक क्रिप्टोलाजी पर सैन्य एवं राजनयिकों का एकाधिकार हुआ करता था। कोड की किताबें और सिफ़रिंग की मशीने रेडियो और टेलीग्राफ़िक सिग्नलो के संरक्षण के लिये ही इस्तेमाल की जाती थी। कई सुपर पावरो ने अपने धन और संसाधनो को क्रिप्टोलाजी के विशेषज्ञों को जुटाने में लगा दी थी, उनका एकमात्र ध्येय अपने संदेशों की मज़बूत कोडिंग और विरोधियों के संदेशों की डीकोडिंग करना था। इस बढती हुई क्रिप्टोलाजिस्ट्स की मांग से ऐसी ऐसी तकनीकों का विकास हुआ जो कि अभी तक सेनाओं तथा राजनयिकों द्वारा एक भेद के रूप में छुपा कर रखी गईं थीं। उस समय बैंकों और उनके पूर्तिकर्ताओं (सप्लायर्स) को अचानक एहसास हुआ कि उन्हे क्रिप्टोलाजी तथा क्रिप्टोलाजी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत विशेषज्ञों की आवश्यकता है।ये एक नितांत अलग किस्म की क्रिप्टोलाजी थी, चूंकि जहां सेनाओं का ध्यान अपने संदेशों को एक राज़ बनाये रखना होता था वहीं दूसरी ओर बैंको का ध्येय था अपने ग्राहकों की सूचना का सत्यापन करना। हालांकि इस वक्त कम्प्यूटर सिक्योरिटि अपनी शैशवावस्था में थी, और अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी एफ़ बी आई के दिशा निर्देशों पर आधारित थी। इस आधार पर तीन तरह के आईडेन्टिफ़िकेशन आंकडे परिभाषित किये गये, ये ऐसे आंकडे थे जो कि यूसर जानता हो। मसलन एक पासवर्ड, ध्वनि पहचान, यूसर के हस्ताक्षर अथवा चेहरे की पहचान। जो यूसर वर्गीकृत सिस्टम को एक्सेस करना चाहते थे, उन्हे इनमें से दो तरह की सुरक्षा जांच से गुज़रना होता था। ये सभी सुरक्षा के तरीके उतने असरदार नही थे जितने कि बैंकों को चाहिये थे। इसी लिये बैंको की सुरक्षा से जुडे लोगो ने उपरोक्त में से दो तरीके अपनाने शुरु करे।
ए टी एम डिज़ाईनर्स ने विभिन्न यूसर्स की पहचान के लिये पहले तरीके को अपनाया।
अब समस्या ये आई कि पिन को सुरक्षित कैसे बनाया जाये। इन सब से निपटने के लिये भांति भांति की तकनीको का विकास हुआ, जिनमे से आई बी एम और वीसा VISA सिस्टम सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। आई बी एम के सिस्टम को १९७९ में लांच किया गया जबकि वीसा उसके कुछ बाद मार्केट में आया। इन दोनो तकनीको में पिन को खाते धारक के खाते से सीक्रेट तौर पर जोडा गया था।किसी मानक
ए टी एम सिस्टम मे पिन की कैलकुलेशन कुछ इस प्रकार से होती है।
किसी भी खाते के आखिरी पांच डिजिट ले लीजिये, और उन्हे वैलिडेशन डेटा के ११ अंको से पहले जोड दीजिये। सामन्यत: ये खाते के नम्बर के पहले ११ अंक होते हैं। ये ११ अंक कार्ड की इश्यू डेट का एक फ़न्क्शन भी हो सकते हैं, किसी भी सूरत में अंत में आपके पास आने वाले १६ अंको की वैल्यू ही एन्क्रिप्शन कलन विधि (Encryption Algorithm) होती है। जो कि आई बी एम और वीसा के लिये DES होती है। (US Data Encryption Standard algorithm) और इसका एन्क्रिप्शन १६ अंको की एक की के द्वारा किया जाता है जिसे हम लोग पिन के रूप में जानते हैं। पहले चार अंको को दशमलवीकृत (Decimalised) कर दिया जाता है, और आखिरी चार अंक ही साधारण पिन होते हैं। कई बैंको के द्वारा सिर्फ़ साधारण पिन ही इश्यू किये जाते है। यद्यपि कई बैंको ने आज हमे ये सुविधा प्रदान कर दी है कि हम अपनी पसंद के पिन को चुन सकें।ये चार अंको की संख्या आफ़सेट कहलाती है, जो कि साधारण पिन में जोड दी जाती है जिससे कि ग्राहक अपने ए टी एम से व्यवहार कर सके।

कबतक खेलोगे खूनी होली

आजकल हर अखबार, हर टी.वी चेनल मै बस आतंकवाद , कत्ल और बलात्कार की घटनाएं ही देखने सुनने को मिलती है और मिल रही है। अभी कुछ ही दिनों पहले सी। आर ।पी ।ऍफ़ रामपुर मैं भी आतंकवादियों ने कई सैनिको की जाने ली थी और अब जयपुर मै कई हजार लोगो को मौत के घाट उत्तारकर खूनी होली क्हेली। और भी न जाने कितने ही अपराध किए होंगे । आख़िर कबतक आतंकवादी इसी तरह खूनी होली खेलकर खुशिया मानते रहेंगे और कबतक हमलोग इसी तरह मजबूर और बेबस होकर ये तमाशा देखते रहेंगे ? शायद तबतक जबतक हमारे देश के क़ानून को कड़ा न किया जाए । क्युकी इसी लचीले क़ानून की वजह से ही अभी तक कई खोंकार आतंकवादी खुले घूम रहे है और इस तरह के घिनोने कारनामो को अंजाम दे रहे है। अब तो आतंकवादियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है क्युकी सभी जानते है की लचीले कानून के कारण हिन्दुस्तान मै सजा जल्दी नही हो पाती । केस लंबा और लंबा होता ही चला जाता है और तब तक मुजरिम बचने के सारे रास्ते तलाश कर लेता है और मामूली सजा काटने के बाद छुट जाता है और साथ ही उसके अन्दर का डर भी खत्म हो जाता है जिस कारण वो और भी हेवानियत पर उतर आता है। हर साल आतंकवादी लाखो निर्दोष लोगो की जाने लेते है । पकड़े भी जाते है पर क्या हो पाई है किसी को कड़ी सजा ? क्या लाखो लोगो की जाने लेने वाले किसी भी एक आतंकवादी को मिली है मौत की सजा ? क्या कटी है किसी खुन्कार आतंकवादी की सारी जिंदगी जेल मैं ? जबकि जेल मै जाया जाए तो कई निर्दोष लोग या मामूली जुर्म किए हुए लोग सालो से जेलों मै सजा काट रहे है । जाने किस बात की । यही है हमारे देश का कानून । इसी लिए तो कह रही हूँ इसे लचीला कानून। जब तक कानून को कड़ा नही किया जायेगा , जब तक सख्ती नही की जायेगी तब तक ये घटनाये यू ही होती रहेंगी शायद बढ़ती रहेंगी। बहुत दुःख के साथ कहने को मजबूर हूँ की भगवान् जयपुर मै मरने वाले लोगो की आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को इस पीड़ा को सहने की शक्ति दे। पर सच्ची श्रधांजलि तो तभी दे पायेंगे जब इस घिनोने कृत्य को करने वालो को कड़ी से कड़ी सजा हो।

Monday, May 12, 2008

३३% का डंका


आजकल महिलाओ को विधान्सभाओ और संसद मैं ३३% आरक्षण पर बहाश जोरो-सोरो पर है । महिला समाज पूरी ताकत झोके है की किसी भी तरह ये पास हो जाए । पर समाज मै एक तबका ऐसा भी है जो ५०% आरक्षण लिए महिलाओ को भटका रहा है । ये वही लोग है जो नही चाहते की महिलाओ को कुछ भी मिले । मैं ये नही कह रही की महिलाये ५०% की हकदार नही। बिल्कुल है । जब हम मर्दो के बराबर या शायद उनसे भी कुछ ज्यादा काम करती है तो क्यों न मिले हमे भी उनके बराबर अधिकार । पर हमे ये भी नही भूलना चाहिए की फालतू की बहाश से कुछ भी हासिल नही होता। ठीक वैसे ही की सरकार ने कहा सड़क बनवायेंगे तो गाव के गाव लड़ पड़े । सड़क हमारे यहाँ से जाए ,हमारे यहाँ से और सड़क कही न जा सकी । बिजली देने को कहा तो फिर वही बहश और सारा जीवन अंधेरे मै ही कट गया। सो बहनो अभी जो मिल रहा है जल्दी झपट लो. इश्से महिलाओ का हौश्ला तो बढेगा ही साथ ही साथ तागत भी बढेगी और आगे की लड़ाई भी कुछ आसान हो जायेगी। क्युकी ३३% आरक्षण मिलना यानी आवाज उठाने वालो की संख्याओ मै और इजाफा होना। तो क्या चाहती है आपलोग सबकुछ या कुछ भी नही ?

"माँ "

ख़ुद भूखी रहकर भी
परिवार को भरपेट खिलाती है
अपने अरमानों का गला घोटकर भी
परिवार की हर जरुरत को पूरा करती है
सारे दुःख सहकर भी
परिवार को सुख देती है
ख़ुद गर्मी मै तपकर भी
परिवार को छाव देती है
ठंड सहकर भी
परिवार को अपने
प्यार की गर्माहट देती है
अपनी लाज बेचकर भी
परिवार की लाज रखती है
वही " माँ "कहलाती है
पर जाने क्यों अंत मै वह
अकेली ही रह जाती है।

चोखेरबाली ने दिया एक स्त्री को धोखा


कुछ दिनों पहले मैं चोखेरबाली से जुड़ी हुई थी पर २ दिन बाद ही उन्होंने मुझे अपने ब्लॉग से निकाल दिया । जानते है क्यों? क्युकी मेने एक साथ २ - ३ पोस्ट कर दी थी। जबकि मेरी कोई गलती नही थी । क्युकी उन्होंने अपने नियमो के बारे मैं कही भी नही लिखा है। इसके लिए मेने उनसे माफ़ी भी मांगी । पर दोबारा उनका कोई जवाब नही आया। चोखेरबाली जो अपने को एक स्त्री का ब्लॉग कहता है क्या उन्होंने मेरे साथ यानि (एक स्त्री ) के साथ धोखा नही किया ? तो क्या सही मायनों मै वो कर पायेंगे स्त्री को धोखा देने वालो का पर्दाफास , क्या दिला पायेंगे स्त्री को धोखा देने वालो को सजा , या फिर उठा पायेंगे स्त्री को धोखा देने वालो के ख़िलाफ़ आवाज। यही नही वहा मेरी एक पोस्ट कुछ समय के लिए रह गई थी . जिसका नाम था "बलात्कार"। जो आप मेरे ब्लॉग मै भी पढ़ सकते है। उसपर मुझे ४-५ कमेंट मिले हुए थे। एक सज्जन ने लिखा था साधारण बक्बास कविता है जिसके जरिये जल्दी प्रसिद्दी पाने की kosish कर रही है। किसी ने लिखा था कमला भंडारी koan है भड़ास पर भी है। तो किसी ने कमला भंडारी koan है। एक सज्जन एषे भी थे जिन्होंने लिखा था बिल्कुल फूहड़ कविता है । एक शालीन स्त्री बार - बार बलात्कार शब्द का प्र्यौग कैसे कर सकती है?
वहा तो मैं इन सवालो का जवाब चाहकर भी नही दे पाई क्युकी जैसे ही मेने अपने जवाब लिखकर पोस्ट की मेरी पोस्ट ही हटा दी गई। इस तरह मन की भड़ास मन मैं ही रही गई। ज्यादा दिनों तक भड़ास को मन मैं रखना मेरे लिए मुश्किल था सो सारे सवालो के जवाब यहाँ लिख रही हूँ।
कमला भंडारी एक साधारण इंसान है और कुछ नही। मैं कोई कवियत्री तो नही शायद इसलिए शब्दों का इस्तेमाल उस तरह नही कर पाई जिस तरह एक कवियत्री कर सकती है , क्युकी मेने लिखना अभी - अभी शुरू किया है । पर मेरी समझ मै ये बात नही आ रही की ज्यादातर पुरुषो को ही आपत्ति क्यों है , शायद इसलिए की बलात्कार शब्द पुरुषो का घिनोना चेहरा जो दिखा देता है । सभी आदमियों का तो नही पर ९०% तो एषे ही है। शायद बलात्कार शब्द सुनते ही पुरुषो को अपने आप पर शर्म आजाती है । सच तो ये है की मर्द्जात मेरे शब्दों को पचा नही पा रहा है। और जहा तक बात है की शालीन महिला इस शब्द का इस्तेमाल केसे कर सकती है तो जरा ये बताइए की जब आपलोग किसी लड़की/महिला को घूरते है ,उसके उप्पर अपनी gandi najre डालते है ,cheetakasi करते है तब क्यों नही देखते की koan सालिन है koan नही। दोस्तो किसी ने कहा है की मै भड़ास पर भी हूँ । तो ये बात अच्छी तरह जान लो की मैं हर उस जगह आपको मिलूंगी जहा मैं अपनी बात कह सकू ,समाज को उसका असली रूप दिखा सकू चाहे वो भड़ास हो ,चोखेरबाली हो या कोई और जगह क्यों न हो।

क्या आप कर सकते है इनकार ?


इस बात से कतई इनकार नही किया जा सकता की आज के कंप्यूटर - आधारित समाज मै हम इंजिनीअर तो बखूबी बना पायेंगे , लेकिन लेखक और कलाकार नही । यानी हम एक ऐसा समाज बनायेंगे , जहा न विचारो की कोई भूमिका होगी और न संवेदना के लिए कोई जगह।

Wednesday, May 7, 2008

एक पैगाम ( हिजडा समाज ) के नाम

आज मनीषा दीदी हायनेस (हिजडा) का ब्लॉग पढ़ा . आपके साथ जिस तरह की बदसलूकी होती है जानकर बहुत ही दुःख हुआ . पर कब तक आप अपने और अपने समाज पर रोना रोती रहेंगी. आपकी हर पोस्ट बस यही कहती दिख रही है की कोई तो हमपर तरस खाओ, हमारे दुखो का रोना रोवो. दीदी आपके दुखो का रोना तो सब रो भी देंगे पर मैं पूछती हूँ की क्या मातृ हमारे रोने भर से ख़त्म हो जायेंगे आपके सारे दुःख ? क्यों ताक रहे है आप दुश्रो का मुह की कोई तो आपकी तरफ़ देखे .यहाँ सब अंधे है,बहरे है जिन्हें अपना ही दिखाई देता है ,अपना सुनाई देता है. बंद करो दुश्रो के आगे गिडगिडाना , मत कहो अपने ऊपर तरस खाने को. वैसे भी जरुरत क्या है आपको किसी की सहानभूति की ? क्यों खाए कोई (हिजडा समाज) पर तरस ? क्या कमी है आपमें ? हाथ है, पैर है , नाक ,मुह ,कान , आँखे सब तो है . शारीरिक बनावट या शारीरिक शक्ति मै थोड़ा सा अन्तर है तो क्या हुआ . इस दुनिया मै लूले, लंगर , गूंगे ,बहरे ,अंधे सब जी रहे है वो भी शान से .जानते है क्यों ? क्युकी उन्होंने अपने अधिकारों को जाना , अपना हक़ माँगा और उनका इस्तेमाल किया. आज उनके लिए स्कूल -कॉलेज है, नौकरी , मान-सम्मान सब कुछ है . आज हिन्दुवो, मुस्लिमों , अपाहिजो, एस .सी ,एस. टी ,महिलावो सबको कोटा चाहिए . सब लड़ रहे है अपने अधिकारों की लड़ाई. तो क्यों सोया है हिजडा समाज . उठो , जागो ,खड़े होवो , मांगो अपने अधिकार, अपना हक़ , अपना कोटा. क्युकी प्यार से भी जरुरी है अधिकार. उस प्यार की कोई कीमत नही जिसमे अधिकार न मिल सके. पता करो संविधान मै आपकी जगह क्या है ,हक़ क्या है , अधिकार क्या है . अपने को एक आम इंसान समझो ,औरो से अलग नही. अपनी मदद ख़ुद करो तभी लोग भी आपकी मदद के लिए शायद आगे आए.कहते है जहाँ चाह है वही राह है . जब तक हिजडा समाज ख़ुद को नही जानेगा ,कौन जानना चाहेगा उसे . मैं आपके साथ हूँ , हम आपके साथ है और यकीन है की सब भी आपके साथ हो जायेंगे.

Sunday, May 4, 2008

आखिर कहाँ है मेरा "अपना घर"

बचपन मै जब बच्ची थी
गुड्डे ,गुडियों से खेला करती थी
खेल छोड़ो कुछ काम करो
कल अपने घर जाना है
बस सब कहा यही करते थे,

फिर जब थोडी बड़ी हुई
पढने की तब बारी आई,
पढो मगर सब काम करो
कल अपने घर जाना है
फिर वही रट सबने दोहराई थी,
बचपन छूटा काम किया,
पढ़ा मगर काम
सुबह- शाम किया।

जब किशोर अवस्था आई
सबने ब्याह की रट लगाई
अब अपने घर जाना है
थोड़ा नही सारा धयान धरो

मेने भी एक सपना बुन लिया
मेरा भी एक ''घर'' होगा,
सबसे ये सुन लिया
सपनो मै रंग सारे भर दिए
जिंदगी के कुछ नए,
रंग मेने भी चुन लिए

फिर ब्याह हुआ,
उस घर को छोड़
इस घर आ गई
एक संतुस्टी सी मन मै लहराई
खूब निहारा,खूब सराहा
सोचा चलो "अपना घर " मिल गया

सपनो के उन रंगो को
जीवन मै जब भरना चाहा
सब चीख उठे ,सब बोल उठे
अरे ! ये क्या कर डाला

अपने घर मै क्या
यही सीखकर आई हो
दुश्रे के घर कैसे रहना है,
क्या अभी तक,
यह समझ नही पाई हो
माथा ठनक उठा ,सर चकराने लगा
कुछ ही पलो मै मानो
दम सा निकलने लगा

" अपना घर"
कौन सा "अपना घर"
उस घर वाले कह्ते
ये है मेरा "अपना घर"
और इस घर वाले कहते ,
वो है तेरा "अपना घर"

न वो घर मेरा
न ये मेरा है
आखिर कहाँ है मेरा
"अपना घर"

lekhika -----kamla bhandari