मुक्त होकर उड़ने की,
है खुले आस्मान को चुने की चाह,
सपनो को साकार करने की
है मंजिल को पाने की चाह,
दम घुटते इस माहोल मै,
है खुली हवा की चाह।
सामाजिक कुरीतियों के बीच,
है एक नई रीति बनने की चाह।
बेटा-बेटी मै भेदभाव करते लोगो को,
है समानता का पाठ पदाने की चाह।
हत्या,बलात्कार,दकेत सांश ले रहे जिस kanoon mei
है उष कानून को बदलने की चाह ।
इक्किश्वे सधी के अशिक्षित लोगो को,
है शिक्षित करने की चाह।
और शिक्षित बेरोजगारों को ,
है रोजगार दिलवाने की चाह।
इस करोरो की अब्धि को,
एक सच्चा,अच्छा,शिक्षित,इमानदार नेता चुनो,
है यही बतलाने की चाह।
और प्यारे नेताओ को ,
उनकी सपथ उनके वायदे याद दिलाने की चाह।
हिंदू,मुस्लिम,सिख,इस्शाई ,
सब आपस मै बही बही ,
लहू एक है लाल रंग का,
है यही दिखाने की चाह।
लेखिका : कमला भंडारी