Sunday, March 2, 2008

चाह

मुक्त होकर उड़ने की,
है खुले आस्मान को chune की चाह,
सपनो को साकार करने
कीहै मंजिल को पाने की चाह,
दम घुटते इस माहोल me,
है खुली हवा की चाह.
सामाजिक कुरीतियों के बीच,
है एक नई रीति बनने की चाह.
बेटा-बेटी मै भेदभाव करते लोगो को,
है समानता का पाठ पदाने की चाह.
हत्या,बलात्कार,दकेत सांश ले रहे जिस क़ानून
मैहै उष कानून को बदलने की चाह .
इक्किश्वे सधी के अशिक्षित लोगो को,
है शिक्षित करने की चाह.
और शिक्षित बेरोजगारों को ,
है रोजगार दिलवाने की चाह.
इस करोरो की abadhi को,एक सच्चा,अच्छा,शिक्षित,इमानदार नेता चुनो,
है यही बतलाने की चाह.
और प्यारे नेताओ को उनकी सपथ उनके वायदे याद दिलान्र की चाह.
हिंदू,मुस्लिम,सिख. इशाईसब
है आपस मै बाही बाही,लहू एक है लाल रंग का,
है यही dikhane की चाह

लेखिका : कमला भंडारी

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